Wednesday, April 15, 2020

General chemistry use for agriculture- सामान्य रासायन का कृषि के लिए उपयोग

अणु(atom)————

रसायन विज्ञान में तत्व तथा योगिक का वह छोटा-सा कण जो स्व‌‌तंत्र अवस्था में रह सकता है,अणू(atom) कहलाता है।
परमाणुओं एवं अणु(atomic and atom)—
पदार्थ अणुओं से मिलकर बने होते हैं और अणु परमाणु से मिलकर बने होते हैं।
व्यास(diamantine)—
साधारणतया इनका व्यास 4Aसे20A तक होता है(1A=10-10मीटर)।
किसी पदार्थ के अणु में उस पदार्थ के कोई भौतिक एवं रासायनिक गुण नहीं होते हैं।
वास्तव में अणु न ठोस होता है,न दृव और नाभि गैस अवस्था में होता है।
किसी पदार्थ का अणु उसी रूप में कभी रासायनिक क्रिया नहीं करता है।
अणुओं की रासायनिक क्रिया के लिए परमाणु ओम की आवश्यकता होती है।

अम्ल (acid)————
अम्ल एक रासायनिक यौगिक है जो जल में घुसकर हाइड्रोजन (H+) आयन देता है।
पी.एच.(p.h.)मान———
इसका पी.एच.मान 7 से कम होता है।

आधुनिक परिभाषा के अनुसार(according the Morden definition) ————
वह रासायनिक यौगिक जो प्रतिकारक यौगिक (क्षार) को हाइड्रोजन आयन(H+) प्रदान करता है,अम्ल कहलाता है। जैसे–एसिटिक अम्ल (सिरका में) और सलफ्यरिक अम्ल (बैटरी में)‌।


अवस्था————
अम्ल ठोस,दृव और गैस किसी भी अवस्था में हो सकते हैं।
महत्वपूर्ण तथ्य(Important talks)————
अम्ल शुद्ध रूप में या घोल के रूप में रह सकते हैं।
जिस पदार्थ या यौगिक में अम्ल के गुण पाए जाते हैं वे (अम्लीय) कहलाते हैं।
मानव आंत्र में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल की अधिकता होने से उत्पन्न होने वाली बीमारी को   “अम्लता” या “एसिडिटी” कहते हैं।
 इलेक्ट्रॉन की खोज (electron's discover)———
इलेक्ट्रॉन की खोज हर जै. जै. थामसन ने की है।

इलेक्ट्रॉन की परिभाषा (definition of electron)—
इलेक्ट्रॉन एक वैधुत ऋणावेशित कण है,जो परमाणु में नाभिक के चारों ओर चक्कर लगाता है।
दृव्यमान————
इसका दृव्यमान हाइड्रोजन परमाणु से भी हजार गुना कम होता है।
नकारात्मक चार्ज(negative charge)———
एक इलेक्ट्रॉन का नकारात्मक चार्ज -1 होता है।
महत्वपूर्ण तथ्य(important talks)———
इस पर1.6*10-19कूलांव परिमाण का ऋण आवेश होता है।
एक इलेक्ट्रॉन का दृव्यमान प्रोटोन के दृव्यमान का 1836वां भाग है।
इसका दृव्यमान 9.11*10.31 होता है।
परमाणु इलेक्ट्रॉनों की संख्या प्रोटोन की संख्या के समान है।
एक इलेक्ट्रॉन e-द्वारा चिन्हित है इलेक्ट्रॉन तीन परमाणु कणों का सबसे छोटा कण है।

ईंधन(energy)————
वह पदार्थ जो हवा में जलकर बगैर अनावश्यक उत्पाद के ऊष्मा उत्पन्न करता है, ईंधन कहलाता है।
एक अच्छे ईंधन के गुण (character sckath)——
सदस्यता एवं आसानी से उपलब्ध होना चाहिए।
ऊष्मीय मान उच्च होना चाहिए।
जलने के बाद उससे अधिक मात्रा में अवशिष्ट होना चाहिए।
जलने के बाद या दौरान में कोई-भी हानिकारक पदार्थ नहीं होना चाहिए।
जलना नियंत्रित होना चाहिए।
पृज्जवलन ताप निम्न होना चाहिए।
ईंधन के प्रकार(types)———
ईंधन मुख्यत: तीन प्रकार के होते हैं-
(1) ठोस ईंधन—ये ईंधन ठोस अवस्था में होते हैं तथा जलाने पर कार्वन-हाइड्रोआक्साइड,  कार्वनमोनोआक्साइड एवं ऊष्मा उत्पन्न करते हैं।
जैसे- लकड़ी, कोयला,कोक आदि ठोस ईंधन के उदाहरण हैं।
(A) कोयला—— कार्वन की मात्रा के आधार पर कोयला चार प्रकार का होता है। जैसे-पीट कोयला (50-60%), लिग्नाइट कोयला (65-70%),बिटुमिनस कोयला (70-85%)
,एंथ्रेसाईट (85%से अधिक)।

(2)दृव——— यह विभिन्न प्रकार के हाइड्रोकार्बन के मिश्रण से बने होते हैं तथा जलाने पर कार्बन डाइऑक्साइड एवं जल का निर्माण करते हैं। जैसे-पेट्रोल,डीजल,केरोसिन,अल्कोहल आदि।
(3)गैस——— ठोस और दृश्य अवस्था वाले ईंधन जलाने पर ऊष्मा उत्पन्न करते हैं उसी गैस दृव वाले ईंधन भी ऊष्मा उत्पन्न करते हैं। जैसे- प्राकृतिक गैस, गोबर गैस, प्रोड्यूसर गैस,जल गैस, कोल गैस आदि।

न्यूट्रॉन(Neutron)————
परमाणु के अंदर एक ऐसा सूक्ष्म कण है जिसका दृव्यमान प्रोटॉन के दृश्यमान के लगभग बराबर है वह कण न्यूट्रॉन है।


आवेश———
न्यूट्रॉन पर कोई आवेश नहीं होता है अर्थात न्यूट्रॉन एक उदासीन कण है।
न्यूट्रॉन की खोज (neutron's discovered)——
न्यूट्रॉन की खोज सन् 1932ई. में जेम्स चेडबिक ने वेरिलियम धातु ā- कणों से आघात कराकर की।
प्रोटॉन(proton)———
प्रोटोन एक धनात्मक विधुत आवेश युक्त कण है, जो परमाणु नाभिक में न्यूट्रॉन के साथ पाया जाता है। इसे p प्रतिक चिन्ह द्वारा दर्शाया जाता है।
प्रोटॉन की खोज (proton's discovered)———
प्रोटोन की खोज ई.गोल्डस्टीन ने विसर्जन नलिका का प्रयोग किया जिसमें से छिद्रमय कैथोड को प्रयुक्त किया।
दृव्यमान———
प्रोटोन का दृव्यमान इलेक्ट्रॉन के दृश्यमान से 1837ऋ गुना भारी होता है।
 प्रोटोन का दृव्यमान 1.6726 *10-27 किग्रा. होता है।
तत्त्व(Element)———
रासायन विज्ञान में तत्त्व वह शुद्ध पदार्थ है, जिसे किसी भी ज्ञात भौतिक एवं रासायनिक विधियों से न तो दो या दो से अधिक पदार्थों में विभाजित किया जा सकता है, और न ही अन्य सरल पदार्थों के योग से बनाया जा सकता है।
जैसे—सोना, चांदी, ऑक्सीजन आदि।
दृव——
दृश्य का आकार अनिश्चित होता है। इनको जिस पात्र में डाला जाता है वह इसका आकार ले लेते हैं।
दृश्य का आयतन निश्चित होता है।
दृश्य का घनत्व गैस से अधिक परंतु ठोस से कम होता है।
नाभिक——
परमाणु के अंदर मध्य में स्थित एक धनात्मक वैधुत आवेश युक्त अत्यंत ठोस क्षेत्र होता है, नाभिक कहलाता है।
नाभिकीय कणों का निर्माण प्रोटोन एवं न्यूट्रॉन से बने होते हैं, इस कण को न्यूक्लियांस कहते हैं। नाभिक की खोज  रदरफोर्ड ने की है।
महत्त्वपूर्ण तथ्य———
प्रोटोन एवं न्यूट्रॉन का दृव्यमान लगभग बराबर होता है।
दोनों का आन्तरिक कोणीय संवेग (स्पिन) ½ होता है।
प्रोटोन इकाई विधुत आवेश युक्त होता है जबकि न्यूट्रॉन अनावेशित होता है।
प्रोटोन एवं न्यूट्रॉन दोनों न्यूक्लिओन कहलाते हैं।
नाभिक का व्यास (10-15 मीटर)(हाइड्रोजन-नाभिक) से (10-14 मीटर) यूरेनियम के दायरे में होता है।
परमाणु का लगभग सारा दृव्यमान नाभिक के कारण ही होता है, इलेक्ट्रॉन का योगदान नगण्य होता है।
नाभिक की परमाणु संख्या Z(प्रोटोन की संख्या), न्यूट्रॉन की संख्या N और दृव्यमान संख्या A (प्रोटोन की संख्या+ न्यूट्रॉन की संख्या)।   जैसे– A=Z+N।
नाभिक के व्यास की परास फर्मी के कोटि की होती है।
नाभिक के गुण———
आकृति।
आकार।
बंधन उर्जा।
कोणीय संवेग।
अर्द्ध-वायू।
अकेलास ठोस——
ऐसे पदार्थ जो गर्म करने पर क्रमशः नरम हो जाते हैं और धीरे-धीरे उनकी श्यनता इतनी कम हो जाती है कि वे चल्य बनकर दृव में परिवर्तित हो जाते हैं, अकेलास कहलाते हैं।
मोल की परिभाषा——
किसी परमाणु अथवा अणू के एक ग्राम परमाण्विक अथवा आण्विय दृव्यमान को, एक मोल कहा जाता है।
किसी पदार्थ की वह मात्रा, जिसमें उस पदार्थ के 6.022*1023 कण होते हैं, पदार्थ का एक मोल कहलाता है।

महत्वपूर्ण तथ्य——
पदार्थ के एक मोल में 6.022*1023  परमाणु अथवा अणू होते हैं।
1 मोल = O(ओक्सीजन) परमाणु = O(ओक्सीजन) परमाणुओं का।
एक ग्राम परमाण्विक दृव्यमान = 16 ग्राम।
1मोल O2=O2 अणू का एक ग्राम अत्यधिक।
दृश्यमान=32 ग्राम
यौगिक——
दो या दो से अधिक तत्वों के परमाणू एक निश्चित अनुपात में रासायनिक संयोग कर जो पदार्थ बनाते हैं उसे यौगिक कहते हैं।
जैसे-नमक, जल, सलफ्यूरिक अम्ल आदि।

समांग मिश्रण———
ऐसा मिश्रण जिसमें सभी तत्व एक ही अवस्था एवं प्रावस्था में होते हैं, उसे समांगी मिश्रण कहते हैं।
जैसे-वायू , विलयन आदि।
विसमांग मिश्रण———
ऐसा मिश्रण जिसमें सभी अवयव भिन्न-भिन्न अवस्था एवं प्रावस्था में होते हैं, उसे विसमांगी मिश्रण कहते हैं।
जैसे-दूध, बादल, धुआं आदि।
अपवर्जन नियम—————
दिये गए परमाणु में दो इलेक्ट्रॉनो के लिए चारों क्वांटम संख्याओं का मान समान नहीं हो सकता।‌
अतः यदि दो इलेक्ट्रॉनों के n,l और m के मान एक ही हो, तो उनका चक्रण विपरीत होगा।
यही अपवर्जन नियम है, इसका प्रतिपादन पाउली (वुल्फन्ग पाउली) ने सन् 1925 में किया था।
इसे क्वाण्टम सिध्दांत भी कहते हैं।
ऑफबाउ नियम———
इलेक्ट्रॉन भरते समय कम ऊर्जा बाले कक्षक पहले भरें जायेंगे, जबकि अधिक ऊर्जा बाले कक्षक बाद में भरें जायेंगे, यही ऑफबाउ नियम है।
इस नियम के अनुसार तत्वों के  इलेक्ट्रॉनिक  विन्यास लिखने लिये विभिन्न परमाणु कक्षको का
क्रम इस प्रकार है-
1s < 2s < 2p < 3s < 3p < 4s < 3d < 4p < 5s < 4d < 5p < 6s तथा आगे भी इसी प्रकार अर्थात 1s का उर्जा स्तर निम्नतम होता है तथा 2s का ऊर्जा स्तर एक से अधिक होता है।
2p का उर्जा स्तर 3s के उर्जा स्तर कम होता है।
4s का उर्जा स्तर 3d के उर्जा स्तर से कम होता है।

अन्तरतारकीय गैस——
वह गैस जो तारों के रिक्त स्थानों के बीच में उपस्थित रहती है, अन्तरतारकीय गैस कहलाती है। यह धूल कणों के साथ तारों के रिक्त स्थानों के बीच में पायी जाती है, अन्तरतारकीय गैस कहलाती है।
महत्वपूर्ण तथ्य———
गैस के अणु तारों के प्रकास से विशेष रंगों को सोख लेते हैं और इस प्रकार उनके कारण तारों के वर्णपटों में काली धारियां बन जाती हैं।
यह काली धारियां तारें के निजी प्रकाश से भी बन सकती हैं।
काली रेखाएँ अन्तरताकीय धुली से बनी होती है।
इसका प्रमाण उन युग्मतारों से मिलता है, जो एक-दूसरे के चारों ओर नाचते रहते हैं।
इन तारों में से जब एक हमारी ओर आता रहता है, तब दूसरा हमसे दूर जाता रहता है।
इसे डॉलपर नियम कहते हैं।
अन्तरतारकीय गैस में कैल्शियम, पॉटैशियम, सॉडियम, टाइटेनियम और लोहे के अस्तित्व का पता इन्हीं तीक्ष्ण-रेखाऔं पर चला है।

लबण——
अम्ल और क्षारकों की क्रिया से लबण बनता है, यह क्रिया उदासीनीकरण कहलाती हैं।
महत्वपूर्ण तथ्य———
साधारण नमक, जिसे सॉडियम क्लॉराइड कहते हैं, वह हाइड्रोक्लोरिक अम्ल और सॉडियम हाइड्रोआक्साइड की परस्पर क्रिया से बनता है।
इसके अतिरिक्त पॉटैशियम नाइट्रेट,सॉडियम  सल्फेट आदि कुछ अन्य लबण हैं।
अम्ल और क्षार की रासायनिक अभिक्रिया में संतुलित कर एक ऐसा यौगिक बनाती है,जो नहीं अम्ल होता है और न हीं क्षार होता है  यह एक नया रासायन लबण बनता है।
अम्ल और क्षार आपस में क्रिया करते हैं,इसे उदासीनीकरण कहलाती है।
उदासीनीकरण क्रिया में अम्ल में उपस्थित हाइड्रोजन आयन(H+), क्षारकों में उपस्थित ऋणात्मक हाइड्रोआक्साइड आयन(H²o) बनाते हैं।
उदासीनीकरण की क्रिया में लबण के साथ-साथ जल भी बनता है।
लबण के प्रकार———
लबण तीन प्रकार के होते हैं,जो इस प्रकार हैं—
(A.) उदासीन लबण, (B.)अम्लीय लबण, (C.)क्षारीय लबण आदि।

मिश्रण————
वह पदार्थ जो दो या दो से अधिक तत्वों या यौगिक के किसी भी अनूपात को मिलाने से प्राप्त होता है, मिश्रण कहलाता है।
इसे सरल यांत्रिक विधि द्वारा पुनः प्रारम्भिक अवयवों में प्राप्त किया जा सकता है।   जैसे-हवा आदि।
मिश्रण के प्रकार————
(A.)समांगी मिश्रण— ऐसा मिश्रण जिसमें सभी अवयव एक ही अवस्था एवं प्रावस्था    में होते हैं, समांगी मिश्रण कहलाते हैं। जैसे-वायु, विलयन आदि।
(B.)विसमांगी मिश्रण— ऐसा मिश्रण जिसमें सभी अवयव भिन्न-भिन्न अवस्था एवं प्रावस्था होते हैं, उसे विसमांगी मिश्रण कहते हैं। जैसे- दूध,बादल, धुआं आदि।
क्वथन——
सामान्य ताप पर वाष्पीकरण की क्रिया दृव की सतह से होती है एवं यह क्रिया धीमी होती है यदि दृव का ताप बढ़ाते जायें तो दृव के सम्पूर्ण आयतन से बड़े-बड़े बुलबुले निकलने लगते हैं तथा दृव तेजी से वाष्प में परिवर्तित होने लगता है तथा एक स्थिति आती है, जब दृव का ताप स्थिर हो जाता है तथा तब तक स्थिर रहता है जब तक सम्मपूर्ण दृव वाष्पीकृत नहीं हो जाता, इस क्रिया को ही दृव का क्वथनन कहते हैं।
क्वथनांक———
दाव के किसी दिए हुए नियत मान के लिए वह नियत ताप जिस पर कोई दृव उबलकर दृव अवस्था से वाष्प की अवस्था में परिणत हो जाय तो वह नियत ताप दृव का क्वथनांक कहलाता है। अर्थात् वह स्थिर ताप जिस पर क्वथन होता है, क्वथनांक कहलाता है।
महत्वपूर्ण तथ्य———
दाव बढ़ाने से दृव का क्वथनांक बड़ जाता है और दाव घटने से दृव का क्वथनांक घट जाता है।
किसी अशुद्धि जैसे- नमक मिलाने से जल का क्वथनांक बड़ जाता है।
यही कारण है कि प्रेशर कुकर में दाव बढ़ने से उसमें उपस्थित पानी का क्वथनांक बड़ जाता है।
जिससे खाद्य पदार्थ उबलने से पकने के लिए प्रर्याप्त ऊष्मा ग्रहण कर लेता है।
क्षारक———
क्षारक वे पदार्थ हैं जिनमें हाइड्रोक्सिल समूह पाया जाता है तथा जिनके जलीय विलयन में हाइड्रोक्सिल आयन(OH-) उपस्थित रहते हैं। यह लाल लिटमस पेपर को नीला कर देते हैं।
महत्वपूर्ण तथ्य—
कास्टिक सोडा (साडियम हाइड्रोआक्साइड) एवं कास्टिक पोटाश (पोटैशियम हाइड्रोआक्साइड) प्रमुख क्षारक हैं।
कास्टिक सोडा का प्रयोग पैट्रोलियम शुद्धिकरण एवं कागज बनाने में किया जाता है।
कास्टिक सोडा विभिन्न प्रकार की साबुन बनाने में किया जाता है।
कास्टिक सोडा का प्रयोग कार्बन डाइऑक्साइड गैस को अवशोषित करने में काम आता है।
खनिज———
ऐसे भौतिक पदार्थ जो खान से खोदकर निकाले जाते हैं, खनिज कहलाते हैं।
कुछ उपयोगी खनिज पदार्थों के नाम- लोहा, अंभ्रक, कोयला, बोक्साइट (जिससे एल्यूमीनियम बनता है), नमक,जस्ता, चूना-पत्थर आदि।
खनिज का वर्गीकरण———
 (A.) सिलिकेट वर्ग, (B.) कार्वोनेट वर्ग, (C.) सल्फेट वर्ग, (D.) हेलाइड वर्ग, (E.) आक्साइड वर्ग,(F.) सल्फाइड वर्ग, (G.)फास्फेट वर्ग,(H.) तत्त्व वर्ग,(Ī.)कार्वनिक वर्ग,




खनिज लवण———
शरीर में जल, कार्बोहाइट्रेट, वहां एवं प्रोटीन के अतिरिक्त कुछ और अकार्वनिक तत्व जो सूक्ष्म मात्रा में उपस्थित रहते हैं जो मानव की विभिन्न उपापचयी क्रियाओं में सहायक होते हैं जिन्हें खनिज लवण कहते हैं।
खनिज लवण के गुण———
यह शरीर के लिए अनिवार्य हैं।
यह शरीर में 4% भार की पूर्ति करते हैं।
यह शरीर की वृद्धि क्रियाओं में आवश्यक होते हैं।
यह खनिज तत्व भुमि में उपस्थित होते हैं।
विभिन्न प्रकार के खनिज स्त्रोत: भुमि से वनस्पतियों में में पहुंचते हैं एवं वनस्पतियों से मनुष्यों में पहुंचते हैं।
मिट्टी में विभिन्न पादप वनस्पति उगती हैं जो खनिज लवणों को भुमि से शोषित कर लेते हैं।
विभिन्न प्रकार के खनिज लवण——
शरीर के लिए आवश्यक पांच तत्व-कार्वोहाईट्रेट, वसा, प्रोटीन, विटामिन एवं जल के भांति अनिवार्य व आवश्यक तत्व हैं।
शरीर के लिए आवश्यक कुल 24 खनिज तत्वों की उपस्थिति का पता अभी तक लगाया गया है।
ये खनिज तत्व निम्न लिखित हैं——
1.कैल्शियम,2.फास्फेरस,3.पोटेशियम,4.सॉडियम,5.सल्फर,6.मैग्नीशियम,7.लोहा,8.मैग्नीज,
9.तांबा,10.आयोडीन,11.कोबाल्ट,12.जिकं,13. एल्यूमीनियम,14.आर्सेनिक,15.ब्रोमीन,
16.क्लोरीन,17.फ्लोओरीन,18.निकिल,19.क्रोमेमियम,20.केडमियम,21.सेलनियम,
22.सिलिकन,23.मोलिबैड्नम,24.क्लोराइड आदि।



विधुत अपघटन———
वह प्रक्रिया जिसमें किसी रासायनिक यौगिक में विधुत धारा प्रवाहित करके उसके रासायनिक बन्धों को तोड़ा जाता है, यह क्रिया विधुत अपघटन कहलाती है।
उदाहरण:
जल में विधुत धारा प्रवाहित करने पर जल, हाइड्रोजन एवं आक्सीजन में विघटित हो जाता है जिसे जल का विधुत अपघटन कहते हैं।
अयस्कों को प्रसंस्कारित करके उनमें निहित रासायनिक तत्व को शुद्ध करना एवं ंउसे अलग करना इसका सबसे महत्वपूर्ण औधौगिक एवं व्यावसायिक महत्व है।
विधुत अपघटन के लिए आवश्यक अवयव———
विधुत अपघट्य-किसी दृव में स्थित चलायमान आयन ।
दिष्ट धारा का स्त्रोत।
दो प्लेटें या छड़ें जिन्हें इलेक्ट्रॉयड कहते हैं।
उपरोक्त अवयवों की भूमिका इस प्रकार है———
चलायमान आयन विधुत धारा के प्रवाह के लिए वाहक(कैरियर) का कार्य करता है। यदि आयन चलायमान न हो (जैसे किसी ठोस में) तो विधुत अपघटन सम्भब नहीं होगा।
1. बाहर से विधुत धारा प्रवाहित करने से आयन बनने या डिस्चार्ज होने के लिए आवश्यक उर्जा प्राप्त होती है।
2. दो विधुताग्र- बाहरी विधुत परिपथ एवं आयनिक विलयन को विधुतीय दृष्टि से जोड़ने का काम करते हैं।
3. विधुताग्र‚विधुत के चालक होने चाहिये। धातु, ग्रेफाइट और अर्द्धचालक पदार्थों के इलेक्ट्रॉयड बहुतायत प्रयोग में लाये जाते हैं।
इलेक्ट्रॉयड  के पदार्थों का चुनाव इन बातों से प्रभावित होता है-
1. इलेक्ट्रॉयड और इलेक्ट्रॉयलाइट के बीच क्रिया नहीं होनी चाहिये।
2. इलेक्ट्रॉयड के निर्माण का खर्च कम होना चाहिये।

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