1. नीम का P.H. मान 10 तक होता है, तथा यह अनेक प्रकार की मिट्टीयों में उग सकने में सक्षम है।
2. भारत में पायी जाने वाली सार्वाधिक एवं मूल्यावान वृक्षों में से एक है।
3. यह बहुत उपयोगी है,इस कारण नीम के वृक्ष के पत्तों एवं छालों का प्रयोग आज भी औषधीय रूप में किया जाता है।
4. नीम में सबसे ज्यादा मात्रा में किसी अन्य औषधीय वृक्ष को छोड़कर सबसे ज्यादा मात्रा में औषधि होती है।
5. यह भारतीय संस्कृति का अंग बन गया है। भारत में, यह पूरे देश में पाया जाता है और, ऊंचे एवं ठंडे क्षेत्रों तथा बांध-स्थलों को छोड़कर, हर प्रकार के कृषि-जलवायु अंचलों में अच्छी तरह उग सकता है।
6. नीम का उपयोग भारतीय प्राचीन चिकित्सा में दो सहस्रावधि से अधिक समय से किया जा रहा है।
8. नीम के वृक्ष अन्य किसी भी प्रकार के फलों की या अन्य किसी भी प्रकार की खेती को नुक़सान नहीं पहुंचाते हैं।
9. इसकी पत्तियों एवं छालों में कुछ प्राकृतिक खाद भी पाये जाते हैं,जो कि फसलों के लिए लाभप्रद हैं।
10. नीम की सूखी पत्तियों को जलाने से मच्छरों का प्रकोप कम हो जाता है।
11. मिट्टी में उपलब्ध अल्प नमी के लिए वार्षिक फसलों से प्रतिस्पर्धा नहीं करता है।
12. नीम के वृक्ष को इसके अनेक प्रकार के गुण होने के कारण इसे सही अर्थों में आश्चर्यवृक्ष कहा जाता है।
13. नीम का महत्व भारतीय त्योहारों में भी प्रमुख स्थान है।
14. भारतीय भोजन में नीम का प्रयोग कड़ी पत्ता के रूप में किया जाता है।
15. जिवाणु , विषाणु , फफूंद या कवक जनित रोग हो जो कुछ हद तक नीम से आसानी से ठीक किया जा सकता है।
16. टाइफाइड , कृमि युक्त बीमारी में नीम से नहाने पर आराम मिलता है।
17. नीम की छिप्टी घाव को ठीक करने में सक्षम है।
18. नीम का तेल वहुत उपयोगी औषधि है।
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नीम की प्रमुख विशेषताएं-
1. विषैले कीटों द्वारा काट लेने पर, नीम के पत्तों को महीन पीस कर काटे गए स्थान पर उसका लेप करने से राहत मिलती है, और जहर भी नहीं फैलता।
2 किसी प्रकार का घाव हो जाने पर भी नीम के पत्तों का लेप लगाने से काफी लाभ मिलता है।
3 दाद या खुजली की समस्याएं होने पर, नीम की पत्तियों को दही के साथ पीसकर लगाने पर काफी जल्दी लाभ होता है। और दाद की समस्या समाप्त हो जाती है।
4 गुर्दे में पथरी होने की स्थिति में नीम के पत्तों की राख को 2 ग्राम मात्रा में लेकर, प्रतिदिन पानी के साथ लेने पर पथरी गलने लगती है, और मूत्रमार्ग से बाहर निकल जाती है।
5 नीम काढ़े को दिन में तीन बार, दो बड़े चम्मच भरकर पीने से बुखार ठीक होता है और कमजोरी भी ठीक होती है।
6 त्वचा रोग होने पर, नीम के तेल का प्रयोग करना लाभकारी होता है।
7 नीम के डंठल में, खांसी, बवासीर, प्रमेह और पेट में होने वाले कीड़ों को खत्म करने के गुण होते हैं।
8. सिरदर्द, दांत दर्द, हाथ-पैर दर्द और सीने में दर्द की समस्या होने पर नीम के तेल की मालिश से काफी लाभ मिलता है।
9 नीम के दातुन से दांत मजबूत होते हैं और पायरिया की बीमारी भी समाप्त होती है।
10 चेहरे पर कील मुहांसे होने पर नीम की छाल को पानी में घिसकर लगाने से फायदा होता है।
11.नीम की पत्तियों का लेप करने से भी त्वचा रोग के कीटाणु नष्ट होते हैं। नीम के तेल में कपूर मिलाकर त्वचा लगाने से भी फायदा होता है।
12. इसके फल का उपयोग कफ और कृमिनाशक के रूप में किया जाता है।
13. इसे प्रतिदिन चबाने या फिर उबालकर पीने से लाभ होता है।
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नीम का उत्पत्ति स्थान- नीम का उत्पत्ति स्थान दक्षिण एशिया तथा भारतीय उपमहाद्वीप को माना गया है। इसके अलावा माना जाता है कि मलय व्दीप या मलेशिया को भी माना जाता है।
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नीम का वैज्ञानिक नाम- नीम का वैज्ञानिक नाम एजाडिरेक्टा इंडिका है।
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नीम का कुल- नीम का कुल मेलियासी है।
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जलवायु- नीम मुख्यत ऊष्णकटिबन्धिय जलवायु में उगाया जाता है, हांलांकि यह आसानी से अर्द्ध-जलवायु में पाया जाता है।
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नीम के पेड़ की उंचाई- नीम तेजी से बढ़ने वाला पेड़ है पेड़ की उंचाई-15 से 20 मीटर अर्थात् 49 फीट से 66 फीट तक हो जाती है।
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खरपतवार की स्थिति-नीम को कई क्षेत्रों में एक खरपतवार माना जाता है , जिसमें मध्य पूर्व के कुछ हिस्से , अधिकांश उप- सहारा अफ्रीका शामिल हैं, जिनमें पश्चिम अफ्रीका और हिंद महासागर के राज्य और ऑस्ट्रेलिया के कुछ हिस्से शामिल हैं ।
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वैज्ञानिक वर्गीकरण-
• किंगडम : प्लांटी
• क्लेड : ट्रेचियोफायट्स
• क्लेड : आवृतबीजी
• क्लेड : एउडिकोट्स
• गण : स्पिनडल्स
• परिवार : मालियासी
• जीनस : मैथी
• प्रजातियां : ए. इंडिका
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व्दिपद नाम-
एजाडिरेक्टा इंडिका।
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उप प्रजाति-
• एजाडिरेक्टा इंडिका किस्म माइनर वेलेटन।
• एजाडिरेक्टा इंडिका किस्म सियामेन्सिस वेलेटन।
• एजाडिरेक्टा इंडिका उप किस्म वार्टाकि कोथारी, लौंधै एवं एन. पी. सिंह।
• मेलिया एजाडिरेक्टा एल. ।
• मेलिया इंडिका ( ए. जस) ब्रांडिस।
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नीम का बांदा-
नीम के बांदे को अपने दुश्मन से स्पर्श करा दें तो उसके बुरे दिन शुरु हो जाते हैं।
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घर के लिए शुभ- घर के वायव्य कोण में नीम के वृक्ष का होना अति शुभ होता है। सामान्तया लोग घर में नीम का पेड़ लगाना पसंद नहीं करते, लेकिन घर में इस पेड़ का लगा होना काफी शुभ माना जाता है। पॉजिटिव एनर्जी के साथ यह पेड़ कई प्रकार से कल्याणकारी होता है। शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति नीम के सात पेड़ लगाता है उसे मृत्योपरांत शिवलोक की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति नीम के तीन पेड़ लगाता है वह सैकड़ों वर्षों तक सूर्य लोक में सुखों का भोग करता है।
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ग्रामीण औषधालय- चरक संहिता एवं सुश्रुत संहिता जैसे औषधीय चिकित्सा पद्धतियों के ग्रंथों में नीम का वर्णन मिलता है।
नीम को करोड़ों इलाज की एक दवा कहा जाता है। नीम मलेरिया को ख़त्म करने में सक्षम है। नीम पर कोई कीड़ा नहीं लग सकता है नीम इस कारण आजाद वृक्ष कहा जाता है।
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"संस्कृत में नीम के बारे कुछ कहा है जो इस प्रकार है"-
“ निम्ब शीतों लघुग्राही कतुर को अग्नि वातनुत
अध्य: श्रमतुटकास ज्वरारूचिक्रिमि प्रणतु”
अर्थात्- यह जो नीम है यह ठण्डी होती है यह हल्की है और ग्रहण करने के लिए शुद्ध एवं पवित्र होती है। ह्रदय को पिर्य चरपरा, अग्नि, वाट, परिश्रम,तृषा,अरूची,क्रिमी,वर्ण,कफ,वामन,कौढ़ एवं विभिन्न पमेह रोगों को नष्ट करती है।
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