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कृषि में प्रयुक्त होने वाले खेती के प्रकार
भारत में आज भी प्राचीनतम सभ्यता के अनुसार खेती की जाती है इसके साथ-साथ आधुनिक तरीकों के हिसाब से खेती अधिक की जाती है जिसमें खेत में फसल से अधिक लाभ लेने के लिए अधिक से अधिक उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है जिसके फलस्वरूप खेत की उर्वरा शक्ति नष्ट हो रही है। इसलिए हमें आज जरूरत है रसायन मुक्त खेती करने की जो मनुष्यों प्रयासों के द्वारा सम्भव ही नहीं है। जब तक
मनुष्य कार्वनिक खेती करेंगे तब तक हमारा वातावरण सुरक्षित नहीं होता।
- मिश्रित खेती
- शुष्क खेती
- बहु पत्रकारीय खेती
- रैंचिंग खेती
1.विशिष्ट खेती (Specialized Farming)-इस प्रकार की खेती के अंतर्गत एक ही प्रकार की खेती का उत्पादन किया जाता है और किसान अपनी आय के लिए केवल इसी पर निर्भर रहता है| व्यक्ति की कुल आय में इस प्रकार की खेती कम से कम 50% आय प्राप्त होती है| उदाहरण: चाय, कहवा, गन्ना और रबर इत्यादि की खेती |
2.मिश्रित खेती (Mised Farming)-एक निश्चित फार्म पर पशुपालन, मुर्गीपालन, मछलीपालन, मधुमक्खी पालन व फसलें उगाना ही मिश्रित खेती कहलाता है। इसमें सभी सहायक उद्यमों से 10% आय प्राप्त होती है।
3.शुष्क खेती (Dry Farming)-ऐसी भूमि में जहाँ वार्षिक वर्षा 20 इंच या 750 m.m. अथवा इससे कम हो, इस प्रकार की खेती की जाती है | ऐसी जगहों पर बिना किसी सिचाईं साधन के उपयोगी फसलों का उत्पादन किया जाता है। शुष्क खेती सिर्फ़ वर्षा के जल पर ही निर्भर है।
4.बहु प्रकारीय खेती (Diversified Farming)-इस प्रकार की खेती का सम्बन्ध उन जोतों या फार्मों से है जिन पर आमदनी के स्रोत कई उद्यमों या फसलों पर निर्भर करते हैं और प्रत्येक उद्यम अथवा फसल से जोत की कुल आमदनी का 50% से कम ही भाग प्राप्त होता है। यह सभी सामान्य फार्म की तरह ही कार्य करते। जैसे- एक फार्म अथवा खेत पर सोयाबीन, एक पर मक्का एवं एक फार्म पर धान की बोआई करना चाहिए।
5.रैंचिंग खेती (Ranching Farming)-इस प्रकार की खेती में भूमि पर कोई भी अनतराशश्य क्रिया नहीं की जाती है और न ही कोई भी फसलों का उत्पादन किया जाता है, जबकि प्राकृतिक वनस्पति को उगने दिया जाता है, जिस पर विभिन्न प्रकार के पशुओं चरने के लिए छोड़ दिया जाता है। ऑस्ट्रेलिया में सबसे ज्यादा चारागाह भूमि है प्रति पशु के हिसाब से। जबकि भारत में प्रति पशु चारागाह भूमि कम है।
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जय हिन्द जय भारत
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