कृषि में समाजशास्त्र का महत्व-
ग्रामीण समाजशास्त्र को समझने से पहले यह जानना आवश्यक है कि कृषि के विद्यार्थी होने के नाते हम इस विषय को अध्ययन क्यों करते हैं? कृषि विद्यार्थी अपनी स्नातक अथवा स्नातकोत्तर कक्षायें उत्तीर्ण करने के पश्चात् या तो ग्रामीण क्षेत्रों में अथवा उनसे सम्बन्धित विभागों में कार्यरत रहते हैं। भारत में लगभग 6.38,365 लाख गाँव है जिनमें देश की 68.84 प्रतिशत जनसंख्या रहती है। देश के अधिकारियों एवं अन्य कर्मचारियों के लिये आवश्यक है कि वे देश की इतनी बड़ी जनसंख्या के परिवेश से पूर्ण परिचित हैं। यह अनिवार्य है कि व्यक्ति जिस क्षेत्र में कार्यरत है, वहाँ की परिस्थितियों से पूर्ण परिचित हो।
उदाहरणार्थ, एक कृषि प्रसार अधिकारी अपने कार्यकर्त्ता से मुर्गी पालन एवं सूअर पालन के बढ़ाने पर जोर देता है। इस परिस्थिति में यह जानना आवश्यक है कि वह ब्राह्मणों से मुर्गी पालन एवं मुसलमानों से सूअर पालन पर जोर न दें। इसी प्रकार ग्रामीण समाजशास्त्र को समझने के लिये पहले समाजशास्त्र का ज्ञान आवश्यक है। इसकी सभी ग्रामीण जानकारी ग्रामीण समाजशास्त्र के अध्ययन से ही मिल पाती है।
समाजशास्त्र (Sociology)-
समाजशास्त्र सामाजिक विज्ञान की सभी शाखाओं में सबसे नवीनतम विषय है। सोशियोलॉजी शब्द का प्रयोग विश्व में सर्वप्रथम फ्रांसीसी समाजशास्त्री ऑगस्त कॉम्टे (1842), ने किया। प्रो० जे० एस० गाँधी (जे० एन०यू०), प्रो० तुलसी पटेल (दिल्ली वि०) के अनुसार, ऑगस्त कॉम्टे ने 1838 में समाजशास्त्र शब्द का प्रयोग किया। तत्पश्चात् समाजशास्त्र का अध्ययन विषय के रूप में संयुक्त राज्य अमेरिका (1876), भारत (1919) में एवं स्वीडन (1947) देशी द्वारा प्रारम्भ किया गया।
सोशियोलॉजी शब्दावली(Sociology Terminology)-
'सोशियोलॉजी' शब्द लॅटिन भाषा के (सोशियस) सोसायट्स तथा ग्रीक भाषा के लोगोस शब्दों से मिलकर बना है। सोसायट्स का हिन्दी अर्थ 'समाज' तथा लोगोस का अर्थ 'विज्ञान' है। इस प्रकार समाजशास्त्र का साधारण शाब्दिक अर्थ समाज का अध्ययन निकलता है।
अर्थात् "समाज के अन्तर्गत उसमें उपस्थित अन्तः क्रियाये, मनुष्यों का स्वभाव, व्यवहार, आचरण सम्बन्ध के ताने-बाने, नियन्त्रण के लिये आवश्यक मूल्यो, सामाजिक संस्थाओं एवं सामाजिकता का अध्ययन किया जाता है।"
समाजशास्त्र की परिभाषा
(Definition of Sociology)-
1. "समाजशास्त्र सामाजिक घटना अथवा समाज का विज्ञान है।" "Sociology is the science of society or social phenomena." एल.एफ.वार्ड
2 "समाजशास्त्र मानवीय अन्तःक्रियाओं एवं अन्तः सम्बन्धों, उनकी दशाओं एवं परिणाम का अध्ययन है।"
"Sociology aims at the study of the Conditions and consequences of human interactions and interrelations."-एम० गिन्सबर्ग
3."समाजशास्त्र सामाजिक संबंधों की प्रकृति का अध्ययन है।" "Sociology is the study of the nature of social relationship." - मैकाइवर
4."समाजशास्त्र सामूहिक प्रतिनिधित्व का विज्ञान है।"
"Sociology is the Science of Collective representation."- ई० दूर्खीम
5."समाजशास्त्र समूहों में मनुष्य के व्यवहार का वर्णन करता है।" "Sociology describes the behaviour of man in groups." - यंग
6. "समाजशास्त्र मानवीय मस्तिष्क की अन्तःक्रियाओं का अध्ययन है।" "Sociology is the study of interactions of human brain." -होबहाउस
7."समाजशास्त्र सामूहिक व्यवहारों का विज्ञान है।"
"Sociology is the Science of Collective behaviours." -पार्क एवं बर्गेस
इन परिभाषाओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि समाजशास्त्र का निम्नलिखित मानकों के रूप अध्ययन किया जाता है-
(i)समाजशास्त्र समाज का अध्ययन है।
(ii)समाजशास्त्र सामाजिक सम्बन्धों का विज्ञान है।
(iii)यह समाजिक समूहों एवं समूह के अन्तर्गत मानव-व्यवहार का अध्ययन है।
ग्रामीण समाज का अर्थ (Meaning of Rural Society)-
ग्रामीण समाज दो शब्दों से मिलकर बना है। समाज (Society) शब्द लेटिन भाषा के 'Societu सोसायट्स (साथी) शब्द से उत्पन्न हुआ माना जाता है कि जिसका अर्थ व्यक्तियों के ऐसे समूह से जिसके सदस्यों में कम या अधिक स्थायी सहयोग पाया जाता है। वे अपने सामूहिक कार्य-कलापों के संगठित रहते हैं एवं उनमें इकट्ठा रहने की भावना पायी जाती है। व्यक्तियों का उक्त सामाजिक सं जब ग्रामीण परिवेश में पाया जाता है, तो उसे 'ग्रामीण समाज' कहते हैं। ग्रामीण समाज का स्वा संगठन एवं सामाजिक व्यवस्था तक सीमित रहती है।
समाजशास्त्र का अध्ययन विभिन्न परिस्थितियों में किया जाता है एवं उन्हीं के आधार पर नामकरण किया गया है। जब यह अध्ययन ग्रामीण परिस्थितियों में किया जाता है, तो इसे 'ग्रामीण समाजशास्त्र कहते हैं।
ग्रामीण जीवन स्थान एवं समयानुसार परिवर्तनशील है। वर्तमान युग के परिवर्तनशील परिवेश में भारतीय गाँवों में जीविकापार्जन का मुख्य साधन आज भी खेती है। यद्यपि गाँवों के सभी व्यक्ति अब खे के धन्धे में भी नहीं लगे हैं। अधिकांश लोग नगरो की ओर दौड़ रहे हैं। भूमि नियतन द्वारा गाँव के अधिकांश लोग अब भू-स्वामी हैं। कृषि उत्पादन शहरों में मण्डी समितियों द्वारा क्रय किया जाता है। मजदूर एवं कृषक अब साहूकार का ऋणी न होकर सरकार का ऋणी है। ऋण विकास पर कम एवं अन अनुत्पादक मदों पर अधिक खर्च होता है। नेतृत्व के लिये नगरों की ओर निहारना पड़ता है। नगरों को राजनीतिक ठेकेदारों ने उसे अपने स्वार्थ के लिये घातक जातिवाद एवं सम्प्रदायवाद में जकड़ लिया है। पुराना जातिवाद पनप रहा है। वास्तव में गाँवों में पंचायत, सहकारिता, कॉलिज प्रबन्ध तन्त्र, गन्ना परिषद हुआ है। वहाँ पर अस्त-व्यस्त बिजली व्यवस्था भी है। गाँवों में कुम्हार, नाई, बाढ़ई, लुहार, सुनार, धोब कार्य के लिये भटक रहे हैं, परन्तु स्वयं ग्रामीण ही ये सेवायें कई गुने मूल्य पर नगर से ले रहे हैं।
समाजशास्त्र की उत्पत्ति (Origin of Sociology)-
समाजशास्त्र की उत्पत्ति 19वीं शताब्दी में यूरोप में फ्रांस की क्रांति एवं औद्योगिक क्रांति के बा हुई। इन क्रांतियों से वहाँ का सामान्य व्यक्ति समानता, स्वतंत्रता व भाई-चारे से परिचित हो गया। व ग्रामीण लोगों पर नगरीय लोगों के कुप्रभाव से प्रभावित हुआ। व्यक्ति पूँजीवाद को भी अपना शोष अनुभव करने लगा। उस समय समाज की समस्याओं को व्यवस्थित रूप में अध्ययन करने वाले समाजशास्त्री ऑगस्त कॉम्टे, हरबर्ट स्पैंसर, एमिल दुर्खाइम, कार्ल मार्क्स एवं मैक्स वैबर प्रमुख रहै इसलिए इन लोगों को समाजशास्त्र जनक माना जाता है।