Thursday, October 13, 2022

कृषि विषय शब्दावली Agriculture Terminology

Agriculture subject- Agriculture Engineering, Agriculture History, Agriculture Terminology, Agronomy, Horticulture , Forestry all about in here and Special Agriculture News


1.फसल प्रणाली(Croping System)-

फसल प्रणाली इस प्रकार हैं-
1. खरीफ फसल : जुलाई से अक्टूबर
2. रबी फसल : अक्टूबर से मार्च
3. जायद फसल : मार्च से जून

2. फसल पैटर्न(Croping Pettern)-

वार्षिक क्रम और फसलों की स्थानिक व्यवस्था और किसी दिए गए क्षेत्र पर परती है, लेकिन एक समय में विभिन्न फसलों के अंतर्गत जो क्षेत्रफल होता है उसका अनुपात है।

3.फसल योजना(Croping Scheme)-

यह संसाधनों, भूमि, श्रम, पूंजी के सर्वाधिक लाभप्रद उपयोग से संबंधित योजना है और प्रबंधन,फसल प्रणाली,
LS प्रणाली, कुक्कुट प्रणाली आदि, कृषि प्रणाली के उप-विभाग हैं यह फसल प्रणाली फसल प्रणाली का उपखंड है

‌4.मोनोक्रोपिंग(Mono Croping)-

एक ही प्रकार की फसल बोने की प्रक्रिया को मोनो क्रॉपिंग कहते हैं इसे मोनो कल्चर भी कहा जाता है
एकल फसल एक मौसम या वर्ष के दौरान एक फसल।

5.दोहरी फसल(Dubble Crop)-

प्रति वर्ष दो फसलें फसलें बोई जाती है। 

6.तिहरी फसल(Triple Crop)-

प्रति वर्ष तीन फसलें बोई जाती हैं। 

7.बहु फसल(Multiple Croping)-

प्रति वर्ष 2 से अधिक फसलें बोई जाती हैं। 

8.समानांतर बहुफसल(Parallel Multiple Croping)-

शून्य प्रतिस्पर्धा के साथ अंतरफसल की जाती है जिसे समानांतर बहुफसल कहते हैं। 

9.अनुक्रमिक फसल(Sequential cropping)- 

फसल गहनता केवल समय के आयाम में है। कोई अंतरफसल प्रतियोगिता नहीं है। 
पहली फसल की कटाई के बाद लगाई गई सफल फसल है।  

10.रिले क्रॉपिंग(Rellay Croping)-

पिछली फसल की कटाई से पहले ही दूसरी फसल बोने की प्रक्रिया है। 

11.सहयोगी फसल(Companion crop)-

गन्ने के बीच में बोई जाने वाली कम अवधि की फसल (अंतरफसल) है। इसे गन्ने के दीर्घीकरण चरण से पहले काटा जाता है

12.घटक फसल(Component crop)-

घटक फसल वह फसल है जिसमें व्यक्तिगत फसल प्रजातियां जो बहु फसल प्रणाली का हिस्सा हैं वह प्रक्रिया प्रयोग करता है। 

13.एकमात्र फसल(Sole crop)-

इस प्रकार की फसल में शुद्ध स्टैंड या ठोस रोपण करते हैं। यह फसल अंतरफसल के विपरीत है। 

14.एक साथ पॉली कल्चर(Simultaneous poly culture)-

इसमें इंटरक्रॉपिंग, मिक्स्ड क्रॉपिंग, इंटर कल्चर, इंटर प्लांटिंग,रिले रोपण आदि प्रकार की खेती की जाती हैं। 

15.एलेलोपैथी(Allelopathy)-

पर्यावरण में निकलने वाले रासायनिक पदार्थों के उत्पादन के माध्यम से एक पौधे का दूसरे पर कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हानिकारक प्रभाव होता है। 

16.सिनर्जेटिक फसल(Synergetic cropping)-

दो फसलों की उपज एकल फसल की उपज से अधिक होती है। 

17.ऊर्जा फसल(Energy crop)- 

उर्जा पाने के उद्देश्य बोई जाने वाली फसल को उर्जा फसल कहते हैं। जैसे-गन्ना और टैपिओका आदि। 

18.नर्स फसल(Nurse crop)-

हरी खाद के लिये बोई जाने वाली फसल को नर्स फसल कहते हैं। जैसे-टेफ्रोसिया, क्रोटेलेरिया आदि। 

19.एवेन्यू फसल(Avenue crop)-

इस प्रकार की फसलों को सड़क किनारे पर लगाया जाता है। जैसे- ग्लिरिसिडिया, कबूतर मटर आदि। 

20.रिपेरियन फसल(Riparian crop)-

वह फसल नदियों के किनारे पर की जाती है इसके अलावा नदियों के पास बोई पाई जाने वाली वनस्पति होती है।    
जैसे- काली मिर्च का पौधा, जल बाँध खरपतवार आदि। 


Tuesday, October 11, 2022

समाजशास्त्र एवं ग्रामीण समाजशास्त्र(Sociology and Rural Sociology)

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कृषि में समाजशास्त्र का महत्व-

ग्रामीण समाजशास्त्र को समझने से पहले यह जानना आवश्यक है कि कृषि के विद्यार्थी होने के नाते हम इस विषय को अध्ययन क्यों करते हैं? कृषि विद्यार्थी अपनी स्नातक अथवा स्नातकोत्तर कक्षायें उत्तीर्ण करने के पश्चात् या तो ग्रामीण क्षेत्रों में अथवा उनसे सम्बन्धित विभागों में कार्यरत रहते हैं। भारत में लगभग 6.38,365 लाख गाँव है जिनमें देश की 68.84 प्रतिशत जनसंख्या रहती है। देश के अधिकारियों एवं अन्य कर्मचारियों के लिये आवश्यक है कि वे देश की इतनी बड़ी जनसंख्या के परिवेश से पूर्ण परिचित हैं। यह अनिवार्य है कि व्यक्ति जिस क्षेत्र में कार्यरत है, वहाँ की परिस्थितियों से पूर्ण परिचित हो।
 उदाहरणार्थ, एक कृषि प्रसार अधिकारी अपने कार्यकर्त्ता से मुर्गी पालन एवं सूअर पालन के बढ़ाने पर जोर देता है। इस परिस्थिति में यह जानना आवश्यक है कि वह ब्राह्मणों से मुर्गी पालन एवं मुसलमानों से सूअर पालन पर जोर न दें। इसी प्रकार ग्रामीण समाजशास्त्र को समझने के लिये पहले समाजशास्त्र का ज्ञान आवश्यक है। इसकी सभी ग्रामीण जानकारी ग्रामीण समाजशास्त्र के अध्ययन से ही मिल पाती है।

समाजशास्त्र (Sociology)-

समाजशास्त्र सामाजिक विज्ञान की सभी शाखाओं में सबसे नवीनतम विषय है। सोशियोलॉजी शब्द का प्रयोग विश्व में सर्वप्रथम फ्रांसीसी समाजशास्त्री ऑगस्त कॉम्टे (1842), ने किया। प्रो० जे० एस० गाँधी (जे० एन०यू०), प्रो० तुलसी पटेल (दिल्ली वि०) के अनुसार, ऑगस्त कॉम्टे ने 1838 में समाजशास्त्र शब्द का प्रयोग किया। तत्पश्चात् समाजशास्त्र का अध्ययन विषय के रूप में संयुक्त राज्य अमेरिका (1876), भारत (1919) में एवं स्वीडन (1947) देशी द्वारा प्रारम्भ किया गया।

सोशियोलॉजी शब्दावली(Sociology Terminology)-

'सोशियोलॉजी' शब्द लॅटिन भाषा के (सोशियस) सोसायट्स तथा ग्रीक भाषा के लोगोस शब्दों से मिलकर बना है। सोसायट्स का हिन्दी अर्थ 'समाज' तथा लोगोस का अर्थ 'विज्ञान' है। इस प्रकार समाजशास्त्र का साधारण शाब्दिक अर्थ समाज का अध्ययन निकलता है। 
अर्थात् "समाज के अन्तर्गत उसमें उपस्थित अन्तः क्रियाये, मनुष्यों का स्वभाव, व्यवहार, आचरण सम्बन्ध के ताने-बाने, नियन्त्रण के लिये आवश्यक मूल्यो, सामाजिक संस्थाओं एवं सामाजिकता का अध्ययन किया जाता है।"

समाजशास्त्र की परिभाषा 
(Definition of Sociology)-

1. "समाजशास्त्र सामाजिक घटना अथवा समाज का विज्ञान है।" "Sociology is the science of society or social phenomena." एल.एफ.वार्ड

2 "समाजशास्त्र मानवीय अन्तःक्रियाओं एवं अन्तः सम्बन्धों, उनकी दशाओं एवं परिणाम का अध्ययन है।"
"Sociology aims at the study of the Conditions and consequences of human interactions and interrelations."-एम० गिन्सबर्ग

3."समाजशास्त्र सामाजिक संबंधों की प्रकृति का अध्ययन है।" "Sociology is the study of the nature of social relationship." - मैकाइवर

4."समाजशास्त्र सामूहिक प्रतिनिधित्व का विज्ञान है।"
"Sociology is the Science of Collective representation."- ई० दूर्खीम

5."समाजशास्त्र समूहों में मनुष्य के व्यवहार का वर्णन करता है।" "Sociology describes the behaviour of man in groups." - यंग

6. "समाजशास्त्र मानवीय मस्तिष्क की अन्तःक्रियाओं का अध्ययन है।" "Sociology is the study of interactions of human brain." -होबहाउस

7."समाजशास्त्र सामूहिक व्यवहारों का विज्ञान है।"
"Sociology is the Science of Collective behaviours." -पार्क एवं बर्गेस

इन परिभाषाओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि समाजशास्त्र का निम्नलिखित मानकों के रूप अध्ययन किया जाता है-
(i)समाजशास्त्र समाज का अध्ययन है। 
(ii)समाजशास्त्र सामाजिक सम्बन्धों का विज्ञान है। 
(iii)यह समाजिक समूहों एवं समूह के अन्तर्गत मानव-व्यवहार का अध्ययन है।

ग्रामीण समाज का अर्थ (Meaning of Rural Society)-

ग्रामीण समाज दो शब्दों से मिलकर बना है। समाज (Society) शब्द लेटिन भाषा के 'Societu सोसायट्स (साथी) शब्द से उत्पन्न हुआ माना जाता है कि जिसका अर्थ व्यक्तियों के ऐसे समूह से जिसके सदस्यों में कम या अधिक स्थायी सहयोग पाया जाता है। वे अपने सामूहिक कार्य-कलापों के संगठित रहते हैं एवं उनमें इकट्ठा रहने की भावना पायी जाती है। व्यक्तियों का उक्त सामाजिक सं जब ग्रामीण परिवेश में पाया जाता है, तो उसे 'ग्रामीण समाज' कहते हैं। ग्रामीण समाज का स्वा संगठन एवं सामाजिक व्यवस्था तक सीमित रहती है।
समाजशास्त्र का अध्ययन विभिन्न परिस्थितियों में किया जाता है एवं उन्हीं के आधार पर नामकरण किया गया है। जब यह अध्ययन ग्रामीण परिस्थितियों में किया जाता है, तो इसे 'ग्रामीण समाजशास्त्र कहते हैं।
ग्रामीण जीवन स्थान एवं समयानुसार परिवर्तनशील है। वर्तमान युग के परिवर्तनशील परिवेश में भारतीय गाँवों में जीविकापार्जन का मुख्य साधन आज भी खेती है। यद्यपि गाँवों के सभी व्यक्ति अब खे के धन्धे में भी नहीं लगे हैं। अधिकांश लोग नगरो की ओर दौड़ रहे हैं। भूमि नियतन द्वारा गाँव के अधिकांश लोग अब भू-स्वामी हैं। कृषि उत्पादन शहरों में मण्डी समितियों द्वारा क्रय किया जाता है। मजदूर एवं कृषक अब साहूकार का ऋणी न होकर सरकार का ऋणी है। ऋण विकास पर कम एवं अन अनुत्पादक मदों पर अधिक खर्च होता है। नेतृत्व के लिये नगरों की ओर निहारना पड़ता है। नगरों को राजनीतिक ठेकेदारों ने उसे अपने स्वार्थ के लिये घातक जातिवाद एवं सम्प्रदायवाद में जकड़ लिया है। पुराना जातिवाद पनप रहा है। वास्तव में गाँवों में पंचायत, सहकारिता, कॉलिज प्रबन्ध तन्त्र, गन्ना परिषद हुआ है। वहाँ पर अस्त-व्यस्त बिजली व्यवस्था भी है। गाँवों में कुम्हार, नाई, बाढ़ई, लुहार, सुनार, धोब कार्य के लिये भटक रहे हैं, परन्तु स्वयं ग्रामीण ही ये सेवायें कई गुने मूल्य पर नगर से ले रहे हैं। 



समाजशास्त्र की उत्पत्ति (Origin of Sociology)-

समाजशास्त्र की उत्पत्ति 19वीं शताब्दी में यूरोप में फ्रांस की क्रांति एवं औद्योगिक क्रांति के बा हुई। इन क्रांतियों से वहाँ का सामान्य व्यक्ति समानता, स्वतंत्रता व भाई-चारे से परिचित हो गया। व ग्रामीण लोगों पर नगरीय लोगों के कुप्रभाव से प्रभावित हुआ। व्यक्ति पूँजीवाद को भी अपना शोष अनुभव करने लगा। उस समय समाज की समस्याओं को व्यवस्थित रूप में अध्ययन करने वाले समाजशास्त्री ऑगस्त कॉम्टे, हरबर्ट स्पैंसर, एमिल दुर्खाइम, कार्ल मार्क्स एवं मैक्स वैबर प्रमुख रहै इसलिए इन लोगों को समाजशास्त्र जनक माना जाता है। 





Sunday, September 25, 2022

बीज की परिभाषा एवं प्रकार Definition Of Seed And Types

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परिभाषा(Defination)

“बीज (seed) पौधे का वह भाग है, जो फल के अंदर सुरक्षित रहता है और अंकुरण के पश्चात नए पौधे को जन्म देता है। बीज के अंदर भ्रूण (Embryo) स्थित होता है, बाद में विकसित होकर एक नए पौधे (Plant) को उत्पन्न करता है।

बीज का विकास (Development of Seeds)

परिपक्व बीज फल के अंदर उपस्थित होते हैं और बीजों का संपूर्ण विकास पुष्प के अण्डाशय में स्थित बीजाण्डों (Ovules) के द्वारा होता है। दूसरे शब्दों में बीज का निर्माण बीजाण्ड (Ovule) के द्वारा होता है।  
बीजाण्ड के विभिन्न भाग बीज के विभिन्न भागों का निर्माण करते हैं। जैसे बीजाण्ड के कृष्णपाल(funikcel) से बीज वृन्त, बाह्य आवरण से कवच (Testa), अन्तः आवरण से अंतः कवच (Tegmen) एवं अण्ड द्वार (Microp से बीज द्वार का निर्माण होता है।
बीज के दोनों आवरण क्रमशः टेस्टा व टेगमेन बीज चोल (Seed Coat) बनाते हैं। कभी-कभी ये दोनों आवरण आपस में इस तरह मिले होते हैं कि इन दोनों को अलग करना अत्यन्त कठिन होता है। व अलग-अलग रूप से नहीं पहिचाना जा सकता है। बीजचोल(Seed Coat) के अंदर का संपूर्ण भाग गिरी या करनैल (Kernel) कहलाता है जो दो या एक बीजपत्रों के रूप में होता है। इन्हीं बीजपत्रों के मध्य भ्रूण (Embryo) उपस्थित होता है। 

बीज में उपस्थित बीजपत्रों की संख्या के आधार पर बीजों को दो प्रकारों में बांटा गया है, जो इस प्रकार हैं। 

(1) एकबीजपत्री बीज(Monocotyledonous Seed)-

इस प्रकार के बीज में केवल एक ही बीजपत्र पाया जाता है। जैसे-चावल, मक्का, गेहूँ, घासें, ताड़, केला, प्याज तथा खजूर आदि एकबीजपत्री बीजों के उदाहरण हैं।

(2) द्विबीजपत्री बीज (Dicotyledonous Seed)-

द्विबीजपत्री बीजों में बीजपत्रों की संख्या दो होती है।। इन बीजों में धूण के विकास के लिये संचित भोजन बीजपत्रों में पाया जाता है इसलिये इनके बीजपत्र स्वस्थ्य मोटे एवं गूदेदार होते हैं। 

ये सभी प्रकार को दाल, अमरूद, आम, नीम, जामुन, कपास, इमली, लौकी, मटर, अण्डी आदि द्विबीजपत्री पौधों के उदाहरण हैं। लेकिन प्रायः सभी द्विबीजपत्री पौधों के बीजों में दो बीजपत्र होते हैं लेकिन अपवाद स्वरूप कुछ द्विबीजपत्री पौधों के बीजों में केवल एक ही बीजपत्र होता है।  जैसे भुईकेश (Corydalis) में। यह पोस्त कुल (Poppy Family/Papaveraceae) का एक पतला संजन आरोही (Tendril Climbing) तथा शाकीय पौधा (Herbaceous plant) है। ऐखोनिया (Abronia) में भी केवल एक ही बीजपत्र होता है। बहुत से परजीवियों (parasites) में एक भी बीजपत्र नहीं होता है। जैसे अमरबेल (Dodder) में। 


बीजों में भ्रूण के पोषण के लिये एक विशेष प्रकार का ऊतक पाया जाता है जिसे भूणपोष (Endosperm कहते हैं। बीजों में भूणपोष की उपस्थिति के आधार पर बीज दो प्रकार के होते हैं जो इस प्रकार हैं। 


(1) भ्रूणपोषी बीज (Endospermic Seed) - ऐसे वे सभी बीज जिनमें भ्रूणपोष (Endosperm) पाया जाता है भ्रूणपोषी या एन्डोस्पर्मिक बीज कहलाते हैं। सभी एक बीजपत्री(Monocotyledons Seed) बीज एन्डोस्पर्मिक होते हैं। उदाहरण- सभी प्रकार के अन्न (जैसे धान, गेहूँ मक्का, नई, जी, ज्वार, बाजरा, गन्ना और बांस सम्मिलित करते हुए), ताड़, लिली (lilies), जिमीकन्द कुल के पौधे आदि।

 (2) अभ्रूणपोषी बीज (Non Endospermic Seeds)

वे सभी बीज जिनमें भ्रूणपोष या एन्डोस्पर्म नहीं या जाता अधूणपोषी या नॉन एन्डोस्पर्मिक बौज कहलाते हैं। जैसे द्विबीजपत्री बीज। अधिकतर सभी द्विबीजपत्री अभूणपोषी होते हैं। जैसे चना, मटर, सेम, लौकी, इमली, आम, कपास, दालें, सूरजमुखी, अमरूद आदि। लेकिन द्विबीजपत्री पौधों में अपवाद स्वरूप कुछ भ्रूणपीपी बीज भी पाए जाते हैं। जैसे-अरण्डी (Castor), पोस्त (Poppy), पपीता (Papaya), शरीफा, गुलअब्बास (Four o'clock plant) आदि ।







Wednesday, September 21, 2022

बीज के प्रकार Type Of seed

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बीज के प्रकार (Types Of Seeds)

उन्नत बीज की 5 श्रेणिया निम्न प्रकार है जो इस प्रकार है-

1.मूल केन्द्रक बीज (Nucleus Seed)–

 इसे नाभीकीय बीज -यह किसी विकसित होने वाली नई किस्म का शुरूआती बीज है जो सबसे कम मात्रा में उपलब्ध रहता है। इस वर्ग के बीजों में सर्वाधिक आनुवांशिक शुद्धता (100%) पाई जाती है। इसे स्वयं प्रजनक द्वारा कृषि विश्वविद्यालयों एवं अनुसंधान संस्थाओ में उत्पादित किया जाता है। मूल केन्द्रक बीज के थेलों पर किसी भी रंग का टैग नही लगाया जाता है।


2. प्रजनक बीज (Breeder seed)–

यह बीज मूल केन्द्रक बीज की संतति है।इसे स्वयं प्रजनक द्वारा कृषि विश्वविद्यालयों एवं अनुसंधान संस्थाओं में उत्पादित किया जाता है। इसमें आनुवांशिक शुद्धता लगभग 100 प्रतिशत होती है। इसकी थैलीयों पर सुनहरे पीले (Golden yellow) रंग का टैग लगा होता है।


3.आधार बीज (Foundation Seed)–

प्रजनक बीज से जो बीज तैयार किया जाता है उसे आधार बीज कहते हैं। यह बीज राष्ट्रीय बीज निगम (NSC), पंजीकृत निजी संस्थाओं या बीज प्रमाणिकरण संस्था द्वारा तैयार किया जाता है। आधार बीज की आनुवांशिक शुद्धता 99.5-99.9 (> 99% ) प्रतिशत एवं भौतिक शुद्धता 99 प्रतिशत से अधिक होनी चाहिए। आधार बीज की थैलियों पर सफेद (White) रंग का टैग लगा होता है।


4.पंजीकृत बीज (Registered Seed)–

यह बीज आधार बीज अथवा स्वय पंजीकृत रीज से तैयार किया जाता है। इस बीज में संतोष जनक आनुवांशिक पहचान एवं शुद्धता पाई जाती है। भारत में समान्यत पंजीकृत बीज का उत्पादन नही किया जाता है तथा आधार बीज से सीधा ही प्रमाणित बीज तैयार किया जाता है। • पंजीकृत बीज की थैलियों पर बैगनी (Purple) अथवा नारंगी (Orange) रंग का टैग लगा होता है।


5.प्रमाणित बीज (Certified Seed)–

यह बीज सामान्यत आधार बीज से तैयार किया जाता है। यह बीज किसान को व्यापारिक फसल उत्पादन हेतु सर्वाधिक वितरित किया जाता है। इसका उत्पादन स्वयं प्रमाणीकरण संस्था या उसकी देख रेख में किया जाता है जैसे सरकारी बीज निगम, बीज प्रमाणीकरण संस्था या स्वयं किसानो द्वारा प्रमाणित बीज तैयार किया जाता है। प्रमाणित बीज की बैलियों पर नीले रंग का टैग लगा होता है। इसमें आनुवांशिक शुद्धता एवं भौतिक शुद्धता 98 प्रतिशत से अधिक होती है।

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Wednesday, September 14, 2022

भारतीय कृषि प्रयुक्त होने वाली खेती के प्रकार Type of farming In Indian Agriculture

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में आपका हार्दिक स्वागत करता है। 

कृषि में प्रयुक्त होने वाले खेती के प्रकार

भारत में आज भी प्राचीनतम सभ्यता के अनुसार खेती की जाती है इसके साथ-साथ आधुनिक तरीकों के हिसाब से खेती अधिक की जाती है जिसमें खेत में फसल से अधिक लाभ लेने के लिए अधिक से अधिक उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है जिसके फलस्वरूप खेत की उर्वरा शक्ति नष्ट हो रही है। इसलिए हमें आज जरूरत है रसायन मुक्त खेती करने की जो मनुष्यों प्रयासों के द्वारा सम्भव ही नहीं है। जब तक
मनुष्य कार्वनिक खेती करेंगे तब तक हमारा वातावरण सुरक्षित नहीं होता। 

  1. विशिष्ट खेती
  1. मिश्रित खेती
  1. शुष्क खेती
  1. बहु पत्रकारीय खेती
  1. रैंचिंग खेती


1.विशिष्ट खेती (Specialized Farming)-इस प्रकार की खेती के अंतर्गत एक ही प्रकार की खेती का उत्पादन किया जाता है और किसान अपनी आय के लिए केवल इसी पर निर्भर रहता है| व्यक्ति की कुल आय में इस प्रकार की खेती कम से कम 50% आय प्राप्त होती है| उदाहरण: चाय, कहवा, गन्ना और रबर इत्यादि की खेती |


2.मिश्रित खेती (Mised Farming)-एक निश्चित फार्म पर पशुपालन, मुर्गीपालन, मछलीपालन, मधुमक्खी पालन व फसलें उगाना ही मिश्रित खेती कहलाता है। इसमें सभी सहायक उद्यमों से 10% आय प्राप्त होती है। 


3.शुष्क खेती (Dry Farming)-ऐसी भूमि में जहाँ वार्षिक वर्षा 20 इंच या 750 m.m. अथवा इससे कम हो, इस प्रकार की खेती की जाती है | ऐसी जगहों पर बिना किसी सिचाईं साधन के उपयोगी फसलों का उत्पादन किया जाता है। शुष्क खेती सिर्फ़ वर्षा के जल पर ही निर्भर है। 


4.बहु प्रकारीय खेती (Diversified Farming)-इस प्रकार की खेती का सम्बन्ध उन जोतों या फार्मों से है जिन पर आमदनी के स्रोत कई उद्यमों या फसलों पर निर्भर करते हैं और प्रत्येक उद्यम अथवा फसल से जोत की कुल आमदनी का 50% से कम ही भाग प्राप्त होता है। यह सभी सामान्य फार्म की तरह ही कार्य करते। जैसे- एक फार्म अथवा खेत पर सोयाबीन, एक पर मक्का एवं एक फार्म पर धान की बोआई करना चाहिए। 


5.रैंचिंग खेती (Ranching Farming)-इस प्रकार की खेती में भूमि पर कोई भी अनतराशश्य क्रिया नहीं की जाती है और न ही कोई भी फसलों का उत्पादन किया जाता है, जबकि प्राकृतिक वनस्पति को उगने दिया जाता है, जिस पर विभिन्न प्रकार के पशुओं चरने के लिए छोड़ दिया जाता है। ऑस्ट्रेलिया में सबसे ज्यादा चारागाह भूमि है प्रति पशु के हिसाब से। जबकि भारत में प्रति पशु चारागाह भूमि कम है। 

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जय हिन्द जय भारत
 




Wednesday, September 7, 2022

खैती की प्रणालियां- farming systems

दोस्तों आज हम जानेंगे खेतियों की प्रणालियों के बारे यह जानकारी आपके लिए बहुत अगर आप किसान पुत्र हो तो हम जानते खेती कई देशों में अलग-अलग प्रणालियों का प्रयोग किया जाता है जो इस प्रकार हैं-------




   





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खेती की प्रणालियाँ

जॉनसन के अनुसार, "किसी दिए गए खेत पर उत्पादों के संयोजन और उत्पादों के उत्पादन में उपयोग की जाने वाली विधि या प्रथाओं को खेती की प्रणाली के रूप में जाना जाता है।" भारतीय स्थिति में, खेती की प्रणाली का संबंध आर्थिक और सामाजिक कामकाज के तरीकों से है।


[1] व्यक्तिगत/किसान खेती:

किसान अपने तरीके से कृषि पद्धति का पालन करते हैं और किसान स्वयं अपने खेत का प्रबंधक / आयोजक होता है और किसान का पूरा परिवार निर्णय लेने में मदद करता है। मुख्य उद्देश्य परिवार की आवश्यकता को पूरा करना है न कि लाभ को अधिकतम करना। लगभग 70% भारतीय किसान इस कृषि प्रणाली का अभ्यास कर रहे हैं। किसान द्वारा राज्य सरकार को भूमि कर का भुगतान किया जाता है।


2)पूंजीवादी खेती:

पूंजी उत्पादन का महत्वपूर्ण कारक है और मुख्य उद्देश्य ऐसी खेती में लाभ को अधिकतम करना है पूंजीपति अपने बड़े खेतों पर कृषि की उन्नत तकनीकों और विधियों का उपयोग करते हैं। खेती की ऐसी प्रणाली अमेरिका और ब्रिटेन में भारत में प्रचलित है

पूंजीवादी खेती चाय, कॉफी और रबर के बागानों तक ही सीमित है।


[3] राज्य की खेती -

इस प्रणाली में खेतों का प्रबंधन सरकार द्वारा किया जाता है और कृषि श्रमिकों को आम तौर पर मासिक आधार पर मजदूरी का भुगतान किया जाता है। मुख्य उद्देश्य हमेशा लाभ को अधिकतम करना नहीं होता है। कृषि अनुसंधान कार्य और प्रदर्शन करने के साथ-साथ गुणवत्ता वाले बीजों की मात्रा बढ़ाने के लिए ऐसी कृषि प्रणाली का अभ्यास किया जाता है। जैसे रिसर्च फार्म, सीड फार्म, डेम ऑनस्ट्रेशन फार्म आदि।


[4] कॉर्पोरेट खेती :-

इस खेती का प्रबंधन पूरी तरह से कॉर्पोरेट क्षेत्र के ऑपरेट ईटिंग लूट द्वारा किया जाता है। यहां बड़ी मात्रा में भूमि और बड़ी मात्रा में पूंजी की आवश्यकता होती है। ऐसी कृषि प्रणाली संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के कुछ हिस्सों में देखी जानी है। महाराष्ट्र और तमिलनाडु।


 [5] संयुक्त खेती :-

यहां दो या दो से अधिक किसान करते हैं

कृषि कार्यों को संयुक्त रूप से अपने कृषि संसाधनों को पूल करके और अंत में उपज को पिछले निश्चित अनुपात के अनुसार विभाजित करते हैं।


 [6] सामूहिक खेती :-

खेती की सामूहिक प्रणाली में कृषि संपत्ति का स्वामित्व समाज को निवेशित किया जाता है, लेकिन व्यक्तिगत किसान को नहीं। सामूहिक फार्म के सभी सदस्यों के साथ समान व्यवहार किया जाता है और सदस्यों को श्रम-ब्रिगेड में विभाजित किया जाता है। प्रत्येक श्रमिक-ब्रिगेड के नेता का चयन किया जाता है। खेत का प्रबंधन निर्वाचित समिति द्वारा किया जाता है। सरकार प्रत्येक सामूहिक खेत से पहले घोषित मूल्य की दर पर उपज की एक निश्चित मात्रा लेता है। यह प्रणाली रूस, चीन जैसे कम्युनिस्ट देशों में लोकप्रिय है। सामूहिक खेती के तीन मुख्य रूप हैं। टोज़, कोल्खोज़ और कम्यून।


[7] सहकारी खेती:-

सभी किसान या सदस्य स्वेच्छा से अपनी जमीन, श्रम और पूंजी जमा करते हैं और आपसी लाभ पाने के लिए एक साथ खेती के कार्य करते हैं।




तो दोस्तों खेती की प्रणालियां कैसी बताना भूलना और अगर हमारा ब्लॉग पसंद तो प्लीस follows करना एवं आपके मित्रों से कराना।



Wednesday, December 23, 2020

मध्य प्रदेश का इतिहास = Madhya Pradesh India's History

Hi friend's you study in m Hindi blog post this is instrating subjact India's Heart State Madhya Pradesh History by covered Agriculture 4 Student Official team .
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नमस्कार दोस्तों आज आप अध्ययन कर रहे हैं एक हिन्दी व्लोग जिसका शीर्षक है भारत माता का हृदय राज्य मध्यप्रदेश का इतिहास इस इतिहास को आज आपके सामने प्रस्तुत किया है एग्रीकल्चर ४ स्टूडेंट टीम ने तो कृपया इस व्लोग को आप सभी मित्रों को शैयर भी कीजिए। 
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One important notice please Show this line because you are in your country,state so I don't know what's your language yes I don't know , So there is no need to fear friends because we have installed Google Translate here.
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अब आप मध्य प्रदेश के इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं -










मध्य प्रदेश का इतिहास पेलियोलिथिक समय से ही शुरुआत मे आ गया था। इसे मुख्यत: तीन अवधियों में विभाजित किया जा सकता है।
मध्य प्रदेश भारत का एक राज्य है, इसकी राजधानी भोपाल है। मध्य प्रदेश १ नवंबर, २००० तक क्षेत्रफल के आधार पर भारत का सबसे बड़ा राज्य था। इस दिन मध्यप्रदेश राज्य से १४ जिले अलग कर छत्तीसगढ़ राज्य छत्तीसगढ़ की स्थापना हुई थी। मध्य प्रदेश की सीमाऐं पांच राज्यों की सीमाओं से मिलती है। इसके उत्तर में उत्तर प्रदेश, पूर्व में छत्तीसगढ़, दक्षिण में महाराष्ट्र, पश्चिम में गुजरात, तथा उत्तर-पश्चिम में राजस्थान है।
हाल के वर्षों में राज्य के सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर राष्ट्रीय औसत से ऊपर हो गया है।
खनिज संसाधनों से समृद्ध, मध्य प्रदेश हीरे और तांबे का सबसे बड़ा भंडार है। अपने क्षेत्र की 30% से अधिक वन क्षेत्र के अधीन है। इसके पर्यटन उद्योग में काफी वृद्धि हुई है। राज्य में वर्ष 2010-11 राष्ट्रीय पर्यटन पुरस्कार जीत लिया।

पाषाण युग

[1] भीमबैठिका की गुफाएं वर्तमान के मध्य प्रदेश में पिलेओलिथिक बस्तियों के प्रमाण प्रस्तुत करती हैं।
[2]  नर्मदा नदी घाटी के विभिन्न स्थानों पर पाषाण युग के कई उपकरण पाये गए है।
[3] एरान, कायथ, महेश्वर, नागदा और नवदतोली सहित कई जगहों पर ताम्रयुगीन स्थानों की खोज की गई है ।
[4] कई स्थानों पर लगभग 30,000 ईसा पूर्व के गुफा चित्रों की खोज की गई है।
[5] वर्तमान मध्य प्रदेश में मनुष्यों की बस्तियां मुख्य रूप से नर्मदा, चंबल और बेतवा जैसे नदियों की घाटियों में विकसित हुई हैं।

वैदिक काल

[1] प्रारंभिक वैदिक काल के दौरान, विंध्य पर्वतों ने इंडो-आर्यन क्षेत्र की दक्षिणी सीमा का गठन किया था। 
[2] प्राचीनतम प्रचलित संस्कृत पाठ ऋग्वेद में, नर्मदा नदी का उल्लेख नहीं मिलता है। 
[3] चौथी सदी ईसापूर्व व्याकरणिक पाणिनी ने मध्य भारत में अवंती जनपद का उल्लेख किया।
[4] इसमें नर्मदा के दक्षिण में बसे केवल एक क्षेत्र अष्मका का उल्लेख है।
[5] बौद्ध पाठ अंगुतारा निकैया ने सोलह महाजनपदों का नाम दिया, जिनमें से अवंती, चेदि और वत्स में मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों आते है। महावस्तु ने पूर्वी मालवा क्षेत्र में एक अन्य दशर्न नामक राज्य का उल्लेख किया था। पाली भाषा मे लिखित बौद्ध लेखों मे मध्य भारत में उज्जैनी (उज्जयिनी), वेदीसा (विदिशा) और महिस्सती (महिष्मति) सहित कई महत्वपूर्ण शहरों का उल्लेख हैं।
[6] प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, अवंती में हैहय राजवंश, वितिहोत्रा वंश (हैहय की एक शाखा) और प्रद्योत वंश द्वारा क्रमिक रूप से शासन किया गया था। प्रद्योत के शासन में, अवंती भारतीय उपमहाद्वीप की एक प्रमुख शक्ति बन गई। बाद में शिशुनाग ने इस पर कब्जा कर मगध साम्राज्य में मिला लिया। शिशुनाग वंश को नंदो ने उखाड़ दिया, जिन्हें बाद में मौर्यों द्वारा प्रतिस्थापित किया गया। 

मौर्य और उनके उत्तराधिकारी


उज्जैन शहर छठी शताब्दी में भारतीय शहरीकरण की लहर में एक प्रमुख केंद्र बन गया, और मालवा या अवंती राज्य के मुख्य शहर के रूप में स्थापित हो गया। इसके पूर्व में, चेदी राज्य, बुंदेलखंड में स्थित था। चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा 322 ईसा पूर्व उत्तर भारत को संयुक्त कर, मौर्य साम्राज्य (322 से 185 ईसा पूर्व) की स्थापना, जिसमें आधुनिक मध्यप्रदेश के सभी क्षेत्र शामिल थे। राजा अशोक की पत्नी, वर्तमान भोपाल के उत्तर में स्थित एक शहर विदिशा से थी। अशोक की मौत के बाद मौर्य साम्राज्य का पतन होने लगा और 3 से 1 शताब्दी ईसा पूर्व तक मध्यभारत में शक, कुशाण और कई स्थानीय राजवंश स्वतंत्र रूप से राज्य करने लगे। प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व में उज्जैन, गंगा के मैदान और भारत के अरबसागर बंदरगाहों के बीच व्यापार मार्गों पर स्थित होने के कारण, एक प्रमुख वाणिज्यिक केंद्र के रूप में उभरा। इसके अलावा यह हिंदू और बौध्दौ के लिये एक महत्वपूर्ण केंद्र भी था। उत्तरी दक्कन के सातवाहन वंश और पश्चिमी सतरापों का शक राजवंश 1 से 3 शताब्दियों तक मध्य प्रदेश के नियंत्रण के लिए आपस में लड़ते रहे।
दक्षिण भारतीय के सातवाहन वंश के राजा गौतमपुत्र सातकर्णी ने दूसरी शताब्दी में शक राजाओं को हरा कर मालावा और गुजरात के कई हिस्सों पर कब्जा कर लिया।
उत्तर भारत में चौथी और पाँचवीं शताब्दी में गुप्त साम्राज्य कि स्थापना हुई, जिसे भारत के लिये एक "प्रभावी या सुनहरा" समय माना जाता है। पारिवराज वंश ने मध्य प्रदेश में गुप्त साम्राज्य के सामंत के रूप में शासन किया। वाकाटक वंश गुप्ताओं के दक्षिणी पड़ोसी थे, जो अरब सागर से बंगाल की खाड़ी तक उत्तरी डेक्कन पठार पर शासन करते थे। पाँचवीं शताब्दी के अंत तक इन साम्राज्यों का पतन हो गया।

मध्यकालीन 

हफ्थलीन लोगो (हूणों/गोरेहूणो) के आक्रमण के बाद गुप्त वंश का पतन होने लगा और भारतवर्ष छोटे छोटे टुकड़ों में बँट गया । मालवा के राजा यशोधवर्मन ने गोर हूणों को हराया था और उनके प्रसार को रोका। थानेसर के राजा हर्षवर्धन ने अपनी मृत्यु(647C) से पहले उत्तर भारत को पुनर्गठित किया मालवा पर दक्षिण भारत के राष्ट्रकूट वंश का राज 8वी से 10वी शताब्दी तक चला मध्यकालीन समय मे ही राजपूत , मालवा के परमार , बुन्देलखंड के चंदेल राजाओ का आविर्भाव हुआ। खजुराहो के मक़न्दिर का निर्माण भी चंदेल राजाओ ने करवाया था । परमार वंश के राजा भोजपाल (1010C-1060C) बहुविद लेखक हुए। इसी समय के आसपास महाकौशल ओर गोंडवाना क्षेत्र में गोंड साम्राज्य का जन्म हुआ । पश्चिम मध्य प्रदेश पर 13वी शताब्दी में तुर्को ने शासन किया । दिल्ली सल्तनत के पतन के बाद अन्य क्षेत्रीय राज्यो का आविर्भाव हुआ जिनमे ग्वालियर के गोमर वंश,ओर मालवा की मुस्लिम सल्तनत प्रमुख थे।

आधुनिक

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद मध्यप्रेदेश को तीन भागों में विभाजित किया गया। भाग क, भाग ख, और भाग ग। भाग क की राजधानी नागपुर, भाग ख की ग्लावलियर और इंदौर तथा भाग ग की रीवा रखी गई।
1955 राज्य पुनर्गठन आयोग की रिपोर्ट के आधार पर मध्यप्रेदेश का गठन भाषीय आधार पर किया गया। उस समय मध्यप्रेदेश मैं कुल 79 रियासतें थी। इसकी राजधानी भोपाल रखी गई। इस समय मध्यप्रेदेश में 8 संभाग व 43 जिले थे।
26 जनवरी 1972 को दो नए जिले भोपाल तथा राजनंदगांव का निर्माण हुआ। 1982 मैं दिग्विजय सरकार ने दस नए जिले बनाने का निर्णय किया। 1998 मैं सिंहदेव कमेठी का गठान किया जिसके आधार पर 6 और नए जिले बनाये गए। इस तरह 1998 में जिलो की संख्या 61 हो गई।
1 नवम्बर 2000 को भारत के 26वें राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ का गठन किया गया जिससे मध्यप्रेदेश के 16 जिले छत्तीसगढ़ में चले गए।
15 अगस्त 2003 को तीन नए जिले अशोकनगर , बुरहानपुर तथा अनूपपुर का निर्माण किया। तथा 17 मई 2008 को अलीराजपुर 24 मई 2008 को सिंगरौली , 14 जून 2008 को सहडोल संभाग, 25 मार्च 2013 को नर्मदापुरम संभाग का गठन किया।
16 अगस्त 2013 को आगर मालवा का निर्माण किया। इस प्रकार वर्तमान में मध्यप्रदेश 52 जिले तथा 10 संभाग हैं। मध्य प्रदेश का 52 वां जिला निवाड़ी 01 अक्टूबर 2018 को अस्तित्व में आया। जो टीकमगढ़ जिले की 3 तहसील निवाड़ी, ओरछा, और पृथ्वीपुर को मिलकर बनाया गया।



Monday, December 21, 2020

कोरोना विषाणु से बचने का उपाय ही इलाज है -Attempt to avoid coronavirus is the cure

आज हम और हमारा विश्व आज उस गन्दे एवं बेकार मन के मन समुद्र के पानी में डूबा चला जा रहा है। 
आज अगर हम हमारी इन्द्रियों को वश में करने का प्रयास नहीं करते हैं हम आज समय में इस परिस्थिति में आ चुके हैं जिससे हम नहीं जानते कब तक बच पायेंगें और अब सब कुछ धीरे-धीरे अपने जीवन में पुनः सुधार होने लगा है आज यह सम्भव हो पाया है तो हमारे दृढ़ संकल्प के द्वारा अगर हम अगर हम मांस भक्षण करते हैं तो यह हिंसा की श्रैणी में आता है हिंसा कभी किसी को सुख-शांति-समृद्धि नहीं मिल जाती वल्कि हमारा शरीर ही दूशित हो जाता है। अगर हम मांस का भक्षण करते हैं तो शरीर में कई प्रकार के कर्क रोग , की प्रकार के हृदय रोग और कई बड़े-बड़े वृहत् रोग होते हैं जिनसे बचकर पाना सायद ही सम्भव है। 
आज के समय में चीन ने भारत, बांग्लादेश, भूटान, जापान, औस्टेलिया को ही अपितु अमेरिका के जैसे बड़े-बड़े देशों को मारा है आज ऐसी बीमारी से ही इन देशों को ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को वह मार चुका है और यह भरपाई वह सायद सात जन्मों तक न कर पाए ।
हां यह कह सकता हूं कि वह सिर्फ युध्द और नकली और मिलावटी पदार्थों को बनाने में ही अव्वल है और यह पूरा विश्व जानता है।  तो विश्व के सभी लोग आप जानते जल कितना कीमती है और वह चाइना इस का हिस्सा फायदा उठा रहा है आप सबको इस बारे में कुछ सोचना चाहिए कि यह बृम्हापुत्र नदी जो चीन में  Siang/Dihang 
के नाम से जानी जाती हैं बस इस पर दुनिया का सबसे बड़ा बांध बनाकर पीने का पानी भी रोककर तरसाना चाहती है और पानी-पानी कर भारत और बांग्लादेश को बाढ़  करना चाहता है तो मित्रों आप ही बताइए कि चीन को समझाने का वक्त है  उसी भाषा में हिसा न करके 

और अब कोरोना विषाणु या वायरस से बचने के उपाय -

कोरोना अर्थात् COVID-19  जो चीनी निर्मित बीमारी है इस प्रकार की बीमारी से पीड़ित रोगी को हम कोई भी व्यक्ति अपनी मर्जी से इलाज नहीं कर सकते हैं, लेकिन इस प्रकार की बीमारी से पीड़ित रोगी अगर छोटे लक्षणों ग्रस्त है तो इन उपायों को अपनाकर आप ठीक एवं स्वस्थ हों जायेंगें।






  1. अगर आपको लगता है कि हमें थोड़ी सी हरारत है और थोड़ा हल्का सा बुखार तो इसके लिए आप गर्म पानी पी लिया करें तथा लोंग, इलाइची, गिलोय, अदरक, गुड़ के केप्सूल बना कर तथा इन्ही का काढ़ा बनाकर पीने से लाभ मिलता है। 
  2. अगर आपको लगता है कि हमें थोड़ी सी हरारत है और थोड़ा हल्का सा बुखार तो इसके लिए आप गर्म पानी पी लिया करें तथा लोंग, इलाइची, गिलोय, अदरक, गुड़ के केप्सूल बना कर तथा इन्ही का काढ़ा बनाकर पीने से लाभ मिलता है। 
  3. अगर आप गर्म पानी में आधा नींबू मिलाकर सेवन करें तो आप को विटामिन सी की प्रर्याप्त मात्रा में प्राप्ति होगी।
  4. गर आप को पेट से सम्बन्धित  समस्याएं पैदा हो रही हो तो आप विटामिन बी जिसका वैज्ञानिक नाम थाईमीन है उससे संबंधित दवाई ले सकते हैं।  
  5. अगर आप डाइविटीज के मरीज हैं तो आप अपनी इन्सुलिन सही समय पर लें।  
  6. आप सही समय पर हो सकता 5 से 7 मिनट तक प्राणायाम अवश्य करें।
तो मित्रों यहि प्रमुख 6 बचाब है आपको कोरोना विषाणु से बचाने सक्षम हैं। 
विश्व का कल्याण हो 
गौ माता की जय 
प्राणियों में सद्भावना हो 
अपने गुरु शिक्षकों की जय 
धरती माता की जय
प्रर्यावरण की जय 
पशुओं को बचाया जाना चाहिए पक्षियों को बचाया जाना चाहिए। 



Sunday, November 22, 2020

India's unique history and discovery in Hindi

इस पोस्ट को समय निकाल कर एक बार जरूर पढ़ें, ऐसी जानकारी व्हाट्सएप पर बार-बार नहीं आती, और आगे भेजें, ताकि लोगों को सनातन धर्म की जानकारी हो  सके आपका आभार धन्यवाद होगा🙏🏻

1-अष्टाध्यायी               पाणिनी

2-रामायण                  वाल्मीकि
3-महाभारत                 वेदव्यास
4-अर्थशास्त्र                  चाणक्य
5-महाभाष्य                  पतंजलि
6-सत्सहसारिका सूत्र     नागार्जुन
7-बुद्धचरित                  अश्वघोष
8-सौंदरानन्द                 अश्वघोष
9-महाविभाषाशास्त्र        वसुमित्र
10- स्वप्नवासवदत्ता        भास
11-कामसूत्र              वात्स्यायन
12-कुमारसंभवम्       कालिदास
13-अभिज्ञानशकुंतलम्
कालिदास  
14-विक्रमोउर्वशियां     कालिदास
15-मेघदूत                 कालिदास
16-रघुवंशम्               कालिदास
17-मालविकाग्निमित्रम्   कालिदास
18-नाट्यशास्त्र            भरतमुनि
19-देवीचंद्रगुप्तम      विशाखदत्त
20-मृच्छकटिकम्          शूद्रक
21-सूर्य सिद्धान्त           आर्यभट्ट
22-वृहतसिंता             बरामिहिर
23-पंचतंत्र।               विष्णु शर्मा

24-कथासरित्सागर        सोमदेव
25-अभिधम्मकोश         वसुबन्धु
26-मुद्राराक्षस           विशाखदत्त
27-रावणवध।              भटिट
28-किरातार्जुनीयम्       भारवि
29-दशकुमारचरितम्     दंडी
30-हर्षचरित                वाणभट्ट
31-कादंबरी                वाणभट्ट
32-वासवदत्ता             सुबंधु
33-नागानंद                हर्षवधन
34-रत्नावली               हर्षवर्धन
35-प्रियदर्शिका            हर्षवर्धन
36-मालतीमाधव         भवभूति
37-पृथ्वीराज विजय     जयानक
38-कर्पूरमंजरी            राजशेखर
39-काव्यमीमांसा       राजशेखर
40-नवसहसांक चरित   पदम् गुप्त
41-शब्दानुशासन         राजभोज

42-वृहतकथामंजरी      क्षेमेन्द्र
43-नैषधचरितम           श्रीहर्ष
44-विक्रमांकदेवचरित   बिल्हण
45-कुमारपालचरित      हेमचन्द्र
46-गीतगोविन्द            जयदेव
47-पृथ्वीराजरासो      चंदरवरदाई
48-राजतरंगिणी           कल्हण
49-रासमाला               सोमेश्वर
50-शिशुपाल वध          माघ
51-गौडवाहो                वाकपति
52-रामचरित       सन्धयाकरनंदी
53-द्वयाश्रय काव्य         हेमचन्द्र

वेद-ज्ञान:-


प्र.2-  वेद-ज्ञान किसने दिया ?
उत्तर-  ईश्वर ने दिया।

प्र.3-  ईश्वर ने वेद-ज्ञान कब षदिया ?
उत्तर-  ईश्वर ने सृष्टि के आरंभ में वेद-ज्ञान दिया।

प्र.4-  ईश्वर ने वेद ज्ञान क्यों दिया ?
उत्तर- मनुष्य-मात्र के कल्याण         के लिए।

प्र.5-  वेद कितने है ?
उत्तर- चार ।                                                  
1-ऋग्वेद 
2-यजुर्वेद  
3-सामवेद
4-अथर्ववेद

प्र.6-  वेदों के ब्राह्मण ।
        वेद              ब्राह्मण
1 - ऋग्वेद      -     ऐतरेय
2 - यजुर्वेद      -     शतपथ
3 - सामवेद     -    तांड्य
4 - अथर्ववेद   -   गोपथ

प्र.7-  वेदों के उपवेद कितने है।
उत्तर -  चार।
      वेद                     उपवेद
    1- ऋग्वेद       -     आयुर्वेद
    2- यजुर्वेद       -    धनुर्वेद
    3 -सामवेद      -     गंधर्ववेद
    4- अथर्ववेद    -     अर्थवेद

प्र 8-  वेदों के अंग हैं ।
उत्तर -  छः ।
1 - शिक्षा
2 - कल्प
3 - निरूक्त
4 - व्याकरण
5 - छंद
6 - ज्योतिष

प्र.9- वेदों का ज्ञान ईश्वर ने किन किन ऋषियो को दिया ?
उत्तर- चार ऋषियों को।
         वेद                ऋषि
1- ऋग्वेद         -      अग्नि
2 - यजुर्वेद       -       वायु
3 - सामवेद      -      आदित्य
4 - अथर्ववेद    -     अंगिरा

उत्तर- समाधि की अवस्था में।

प्र.11-  वेदों में कैसे ज्ञान है ?
उत्तर-  सब सत्य विद्याओं का ज्ञान-विज्ञान।

प्र.12-  वेदो के विषय कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-   चार ।
        ऋषि        विषय
1-  ऋग्वेद    -    ज्ञान
2-  यजुर्वेद    -    कर्म
3-  सामवे     -    उपासना
4-  अथर्ववेद -    विज्ञान

प्र.13-  वेदों में।

ऋग्वेद में।
1-  मंडल      -  10
2 - अष्टक     -   08
3 - सूक्त        -  1028
4 - अनुवाक  -   85 
5 - ऋचाएं     -  10589

यजुर्वेद में।
1- अध्याय    -  40
2- मंत्र           - 1975

सामवेद में।
1-  आरचिक   -  06
2 - अध्याय     -   06
3-  ऋचाएं       -  1875

अथर्ववेद में।
1- कांड      -    20
2- सूक्त      -   731
3 - मंत्र       -   5977
          
प्र.14-  वेद पढ़ने का अधिकार किसको है ?                                                                                                                                                              उत्तर-  मनुष्य-मात्र को वेद पढ़ने का अधिकार है।

प्र.15-  क्या वेदों में मूर्तिपूजा का विधान है ?
उत्तर-  बिलकुल भी नहीं।

प्र.16-  क्या वेदों में अवतारवाद का प्रमाण है ?
उत्तर-  नहीं।

प्र.17-  सबसे बड़ा वेद कौन-सा है ?
उत्तर-  ऋग्वेद।

प्र.18-  वेदों की उत्पत्ति कब हुई ?
उत्तर-  वेदो की उत्पत्ति सृष्टि के आदि से परमात्मा द्वारा हुई । अर्थात 1 अरब 96 करोड़ 8 लाख 43 हजार वर्ष पूर्व । 

प्र.19-  वेद-ज्ञान के सहायक दर्शन-शास्त्र ( उपअंग ) कितने हैं और उनके लेखकों का क्या नाम है ?
उत्तर- 
1-  न्याय दर्शन  - गौतम मुनि।
2- वैशेषिक दर्शन  - कणाद मुनि।
3- योगदर्शन  - पतंजलि मुनि।
4- मीमांसा दर्शन  - जैमिनी मुनि।
5- सांख्य दर्शन  - कपिल मुनि।
6- वेदांत दर्शन  - व्यास मुनि।

प्र.20-  शास्त्रों के विषय क्या है ?
उत्तर-  आत्मा,  परमात्मा, प्रकृति,  जगत की उत्पत्ति,  मुक्ति अर्थात सब प्रकार का भौतिक व आध्यात्मिक  ज्ञान-विज्ञान आदि।

प्र.21-  प्रामाणिक उपनिषदे कितनी है ?
उत्तर-  केवल ग्यारह।

प्र.22-  उपनिषदों के नाम बतावे ?
उत्तर-  
01-ईश ( ईशावास्य )  
02-केन  
03-कठ  
04-प्रश्न  
05-मुंडक  
06-मांडू  
07-ऐतरेय  
08-तैत्तिरीय 
09-छांदोग्य 
10-वृहदारण्यक 
11-श्वेताश्वतर ।

प्र.23-  उपनिषदों के विषय कहाँ से लिए गए है ?
उत्तर- वेदों से।
प्र.24- चार वर्ण।
उत्तर- 
1- ब्राह्मण
2- क्षत्रिय
3- वैश्य
4- शूद्र

प्र.25- चार युग।
1- सतयुग - 17,28000  वर्षों का नाम ( सतयुग ) रखा है।
2- त्रेतायुग- 12,96000  वर्षों का नाम ( त्रेतायुग ) रखा है।
3- द्वापरयुग- 8,64000  वर्षों का नाम है।
4- कलयुग- 4,32000  वर्षों का नाम है।
कलयुग के  4,976  वर्षों का भोग हो चुका है अभी तक।
4,27024 वर्षों का भोग होना है। 

पंच महायज्ञ
       1- ब्रह्मयज्ञ   
       2- देवयज्ञ
       3- पितृयज्ञ
       4- बलिवैश्वदेवयज्ञ
       5- अतिथियज्ञ
   
स्वर्ग  -  जहाँ सुख है।
नरक  -  जहाँ दुःख है।.

*#भगवान_शिव के  "35" रहस्य!!!!!!!!

भगवान शिव अर्थात पार्वती के पति शंकर जिन्हें महादेव, भोलेनाथ, आदिनाथ आदि कहा जाता है।

*🔱1. आदिनाथ शिव : -* सर्वप्रथम शिव ने ही धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिए उन्हें 'आदिदेव' भी कहा जाता है। 'आदि' का अर्थ प्रारंभ। आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम 'आदिश' भी है।

*🔱2. शिव के अस्त्र-शस्त्र : -* शिव का धनुष पिनाक, चक्र भवरेंदु और सुदर्शन, अस्त्र पाशुपतास्त्र और शस्त्र त्रिशूल है। उक्त सभी का उन्होंने ही निर्माण किया था।

*🔱3. भगवान शिव का नाग : -* शिव के गले में जो नाग लिपटा रहता है उसका नाम वासुकि है। वासुकि के बड़े भाई का नाम शेषनाग है।

*🔱4. शिव की अर्द्धांगिनी : -* शिव की पहली पत्नी सती ने ही अगले जन्म में पार्वती के रूप में जन्म लिया और वही उमा, उर्मि, काली कही गई हैं।

*🔱5. शिव के पुत्र : -* शिव के प्रमुख 6 पुत्र हैं- गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा। सभी के जन्म की कथा रोचक है।

*🔱6. शिव के शिष्य : -* शिव के 7 शिष्य हैं जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है। इन ऋषियों ने ही शिव के ज्ञान को संपूर्ण धरती पर प्रचारित किया जिसके चलते भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई। शिव ने ही गुरु और शिष्य परंपरा की शुरुआत की थी। शिव के शिष्य हैं- बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज इसके अलावा 8वें गौरशिरस मुनि भी थे।

*🔱7. शिव के गण : -* शिव के गणों में भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय प्रमुख हैं। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना जाता है। 

*🔱8. शिव पंचायत : -* भगवान सूर्य, गणपति, देवी, रुद्र और विष्णु ये शिव पंचायत कहलाते हैं।

*🔱9. शिव के द्वारपाल : -* नंदी, स्कंद, रिटी, वृषभ, भृंगी, गणेश, उमा-महेश्वर और महाकाल।

*🔱10. शिव पार्षद : -* जिस तरह जय और विजय विष्णु के पार्षद हैं उसी तरह बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी आदि शिव के पार्षद हैं।

*🔱11. सभी धर्मों का केंद्र शिव : -* शिव की वेशभूषा ऐसी है कि प्रत्येक धर्म के लोग उनमें अपने प्रतीक ढूंढ सकते हैं। मुशरिक, यजीदी, साबिईन, सुबी, इब्राहीमी धर्मों में शिव के होने की छाप स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। शिव के शिष्यों से एक ऐसी परंपरा की शुरुआत हुई, जो आगे चलकर शैव, सिद्ध, नाथ, दिगंबर और सूफी संप्रदाय में वि‍भक्त हो गई।

*🔱12. बौद्ध साहित्य के मर्मज्ञ अंतरराष्ट्रीय : -*  ख्यातिप्राप्त विद्वान प्रोफेसर उपासक का मानना है कि शंकर ने ही बुद्ध के रूप में जन्म लिया था। उन्होंने पालि ग्रंथों में वर्णित 27 बुद्धों का उल्लेख करते हुए बताया कि इनमें बुद्ध के 3 नाम अतिप्राचीन हैं- तणंकर, शणंकर और मेघंकर।

*🔱13. देवता और असुर दोनों के प्रिय शिव : -* भगवान शिव को देवों के साथ असुर, दानव, राक्षस, पिशाच, गंधर्व, यक्ष आदि सभी पूजते हैं। वे रावण को भी वरदान देते हैं और राम को भी। उन्होंने भस्मासुर, शुक्राचार्य आदि कई असुरों को वरदान दिया था। शिव, सभी आदिवासी, वनवासी जाति, वर्ण, धर्म और समाज के सर्वोच्च देवता हैं।

*🔱14. शिव चिह्न : -* वनवासी से लेकर सभी साधारण व्‍यक्ति जिस चिह्न की पूजा कर सकें, उस पत्‍थर के ढेले, बटिया को शिव का चिह्न माना जाता है। इसके अलावा रुद्राक्ष और त्रिशूल को भी शिव का चिह्न माना गया है। कुछ लोग डमरू और अर्द्ध चन्द्र को भी शिव का चिह्न मानते हैं, हालांकि ज्यादातर लोग शिवलिंग अर्थात शिव की ज्योति का पूजन करते हैं।

*🔱15. शिव की गुफा : -* शिव ने भस्मासुर से बचने के लिए एक पहाड़ी में अपने त्रिशूल से एक गुफा बनाई और वे फिर उसी गुफा में छिप गए। वह गुफा जम्मू से 150 किलोमीटर दूर त्रिकूटा की पहाड़ियों पर है। दूसरी ओर भगवान शिव ने जहां पार्वती को अमृत ज्ञान दिया था वह गुफा 'अमरनाथ गुफा' के नाम से प्रसिद्ध है।

*🔱16. शिव के पैरों के निशान : -* श्रीपद- श्रीलंका में रतन द्वीप पहाड़ की चोटी पर स्थित श्रीपद नामक मंदिर में शिव के पैरों के निशान हैं। ये पदचिह्न 5 फुट 7 इंच लंबे और 2 फुट 6 इंच चौड़े हैं। इस स्थान को सिवानोलीपदम कहते हैं। कुछ लोग इसे आदम पीक कहते हैं।

रुद्र पद- तमिलनाडु के नागपट्टीनम जिले के थिरुवेंगडू क्षेत्र में श्रीस्वेदारण्येश्‍वर का मंदिर में शिव के पदचिह्न हैं जिसे 'रुद्र पदम' कहा जाता है। इसके अलावा थिरुवन्नामलाई में भी एक स्थान पर शिव के पदचिह्न हैं।

तेजपुर- असम के तेजपुर में ब्रह्मपुत्र नदी के पास स्थित रुद्रपद मंदिर में शिव के दाएं पैर का निशान है।

जागेश्वर- उत्तराखंड के अल्मोड़ा से 36 किलोमीटर दूर जागेश्वर मंदिर की पहाड़ी से लगभग साढ़े 4 किलोमीटर दूर जंगल में भीम के मंदिर के पास शिव के पदचिह्न हैं। पांडवों को दर्शन देने से बचने के लिए उन्होंने अपना एक पैर यहां और दूसरा कैलाश में रखा था।

रांची- झारखंड के रांची रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर की दूरी पर 'रांची हिल' पर शिवजी के पैरों के निशान हैं। इस स्थान को 'पहाड़ी बाबा मंदिर' कहा जाता है।

*🔱17. शिव के अवतार : -* वीरभद्र, पिप्पलाद, नंदी, भैरव, महेश, अश्वत्थामा, शरभावतार, गृहपति, दुर्वासा, हनुमान, वृषभ, यतिनाथ, कृष्णदर्शन, अवधूत, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, किरात, सुनटनर्तक, ब्रह्मचारी, यक्ष, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, द्विज, नतेश्वर आदि हुए हैं। वेदों में रुद्रों का जिक्र है। रुद्र 11 बताए जाते हैं- कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शंभू, चण्ड तथा भव।

*🔱18. शिव का विरोधाभासिक परिवार : -* शिवपुत्र कार्तिकेय का वाहन मयूर है, जबकि शिव के गले में वासुकि नाग है। स्वभाव से मयूर और नाग आपस में दुश्मन हैं। इधर गणपति का वाहन चूहा है, जबकि सांप मूषकभक्षी जीव है। पार्वती का वाहन शेर है, लेकिन शिवजी का वाहन तो नंदी बैल है। इस विरोधाभास या वैचारिक भिन्नता के बावजूद परिवार में एकता है।

*🔱19.*  ति‍ब्बत स्थित कैलाश पर्वत पर उनका निवास है। जहां पर शिव विराजमान हैं उस पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक है जो भगवान विष्णु का स्थान है। शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के पार क्रमश: स्वर्ग लोक और फिर ब्रह्माजी का स्थान है।

*🔱20.शिव भक्त : -* ब्रह्मा, विष्णु और सभी देवी-देवताओं सहित भगवान राम और कृष्ण भी शिव भक्त है। हरिवंश पुराण के अनुसार, कैलास पर्वत पर कृष्ण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। भगवान राम ने रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापित कर उनकी पूजा-अर्चना की थी।

*🔱21.शिव ध्यान : -* शिव की भक्ति हेतु शिव का ध्यान-पूजन किया जाता है। शिवलिंग को बिल्वपत्र चढ़ाकर शिवलिंग के समीप मंत्र जाप या ध्यान करने से मोक्ष का मार्ग पुष्ट होता है।

*🔱22.शिव मंत्र : -* दो ही शिव के मंत्र हैं पहला- ॐ नम: शिवाय। दूसरा महामृत्युंजय मंत्र- ॐ ह्रौं जू सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जू ह्रौं ॐ ॥ है।

*🔱23.शिव व्रत और त्योहार : -* सोमवार, प्रदोष और श्रावण मास में शिव व्रत रखे जाते हैं। शिवरात्रि और महाशिवरात्रि शिव का प्रमुख पर्व त्योहार है।

*🔱24.शिव प्रचारक : -* भगवान शंकर की परंपरा को उनके शिष्यों बृहस्पति, विशालाक्ष (शिव), शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज, अगस्त्य मुनि, गौरशिरस मुनि, नंदी, कार्तिकेय, भैरवनाथ आदि ने आगे बढ़ाया। इसके अलावा वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, बाण, रावण, जय और विजय ने भी शैवपंथ का प्रचार किया। इस परंपरा में सबसे बड़ा नाम आदिगुरु भगवान दत्तात्रेय का आता है। दत्तात्रेय के बाद आदि शंकराचार्य, मत्स्येन्द्रनाथ और गुरु गुरुगोरखनाथ का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।

*🔱25.शिव महिमा : -* शिव ने कालकूट नामक विष पिया था जो अमृत मंथन के दौरान निकला था। शिव ने भस्मासुर जैसे कई असुरों को वरदान दिया था। शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था। शिव ने गणेश और राजा दक्ष के सिर को जोड़ दिया था। ब्रह्मा द्वारा छल किए जाने पर शिव ने ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया था।

*🔱26.शैव परम्परा : -* दसनामी, शाक्त, सिद्ध, दिगंबर, नाथ, लिंगायत, तमिल शैव, कालमुख शैव, कश्मीरी शैव, वीरशैव, नाग, लकुलीश, पाशुपत, कापालिक, कालदमन और महेश्वर सभी शैव परंपरा से हैं। चंद्रवंशी, सूर्यवंशी, अग्निवंशी और नागवंशी भी शिव की परंपरा से ही माने जाते हैं। भारत की असुर, रक्ष और आदिवासी जाति के आराध्य देव शिव ही हैं। शैव धर्म भारत के आदिवासियों का धर्म है।

*🔱27.शिव के प्रमुख नाम : -*  शिव के वैसे तो अनेक नाम हैं जिनमें 108 नामों का उल्लेख पुराणों में मिलता है लेकिन यहां प्रचलित नाम जानें- महेश, नीलकंठ, महादेव, महाकाल, शंकर, पशुपतिनाथ, गंगाधर, नटराज, त्रिनेत्र, भोलेनाथ, आदिदेव, आदिनाथ, त्रियंबक, त्रिलोकेश, जटाशंकर, जगदीश, प्रलयंकर, विश्वनाथ, विश्वेश्वर, हर, शिवशंभु, भूतनाथ और रुद्र।

*🔱28.अमरनाथ के अमृत वचन : -* शिव ने अपनी अर्धांगिनी पार्वती को मोक्ष हेतु अमरनाथ की गुफा में जो ज्ञान दिया उस ज्ञान की आज अनेकानेक शाखाएं हो चली हैं। वह ज्ञानयोग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है। 'विज्ञान भैरव तंत्र' एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है।

*🔱29.शिव ग्रंथ : -* वेद और उपनिषद सहित विज्ञान भैरव तंत्र, शिव पुराण और शिव संहिता में शिव की संपूर्ण शिक्षा और दीक्षा समाई हुई है। तंत्र के अनेक ग्रंथों में उनकी शिक्षा का विस्तार हुआ है।

*🔱30.शिवलिंग : -* वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है, उसे लिंग कहते हैं। इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है। वस्तुत: यह संपूर्ण सृष्टि बिंदु-नाद स्वरूप है। बिंदु शक्ति है और नाद शिव। बिंदु अर्थात ऊर्जा और नाद अर्थात ध्वनि। यही दो संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार है। इसी कारण प्रतीक स्वरूप शिवलिंग की पूजा-अर्चना है।

*🔱31.बारह ज्योतिर्लिंग : -* सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ॐकारेश्वर, वैद्यनाथ, भीमशंकर, रामेश्वर, नागेश्वर, विश्वनाथजी, त्र्यम्बकेश्वर, केदारनाथ, घृष्णेश्वर। ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति के संबंध में अनेकों मान्यताएं प्रचलित है। ज्योतिर्लिंग यानी 'व्यापक ब्रह्मात्मलिंग' जिसका अर्थ है 'व्यापक प्रकाश'। जो शिवलिंग के बारह खंड हैं। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है।

 दूसरी मान्यता अनुसार शिव पुराण के अनुसार प्राचीनकाल में आकाश से ज्‍योति पिंड पृथ्‍वी पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। इस तरह के अनेकों उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे। भारत में गिरे अनेकों पिंडों में से प्रमुख बारह पिंड को ही ज्‍योतिर्लिंग में शामिल किया गया।

*🔱32.शिव का दर्शन : -* शिव के जीवन और दर्शन को जो लोग यथार्थ दृष्टि से देखते हैं वे सही बुद्धि वाले और यथार्थ को पकड़ने वाले शिवभक्त हैं, क्योंकि शिव का दर्शन कहता है कि यथार्थ में जियो, वर्तमान में जियो, अपनी चित्तवृत्तियों से लड़ो मत, उन्हें अजनबी बनकर देखो और कल्पना का भी यथार्थ के लिए उपयोग करो। आइंस्टीन से पूर्व शिव ने ही कहा था कि कल्पना ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है।

*🔱33.शिव और शंकर : -* शिव का नाम शंकर के साथ जोड़ा जाता है। लोग कहते हैं- शिव, शंकर, भोलेनाथ। इस तरह अनजाने ही कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम बताते हैं। असल में, दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं। शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में दिखाया जाता है। कई जगह तो शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए दिखाया गया है। अत: शिव और शंकर दो अलग अलग सत्ताएं है। हालांकि शंकर को भी शिवरूप माना गया है। माना जाता है कि महेष (नंदी) और महाकाल भगवान शंकर के द्वारपाल हैं। रुद्र देवता शंकर की पंचायत के सदस्य हैं।

*🔱34. देवों के देव महादेव :* देवताओं की दैत्यों से प्रतिस्पर्धा चलती रहती थी। ऐसे में जब भी देवताओं पर घोर संकट आता था तो वे सभी देवाधिदेव महादेव के पास जाते थे। दैत्यों, राक्षसों सहित देवताओं ने भी शिव को कई बार चुनौती दी, लेकिन वे सभी परास्त होकर शिव के समक्ष झुक गए इसीलिए शिव हैं देवों के देव महादेव। वे दैत्यों, दानवों और भूतों के भी प्रिय भगवान हैं। वे राम को भी वरदान देते हैं और रावण को भी।

*🔱35. शिव हर काल में : -* भगवान शिव ने हर काल में लोगों को दर्शन दिए हैं। राम के समय भी शिव थे। महाभारत काल में भी शिव थे और विक्रमादित्य के काल में भी शिव के दर्शन होने का उल्लेख मिलता है। भविष्य पुराण अनुसार राजा हर्षवर्धन को भी भगवान शिव ने दर्शन दिये थे l

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