Thursday, October 13, 2022
कृषि विषय शब्दावली Agriculture Terminology
Tuesday, October 11, 2022
समाजशास्त्र एवं ग्रामीण समाजशास्त्र(Sociology and Rural Sociology)
कृषि में समाजशास्त्र का महत्व-
समाजशास्त्र (Sociology)-
सोशियोलॉजी शब्दावली(Sociology Terminology)-
समाजशास्त्र की परिभाषा
(Definition of Sociology)-
ग्रामीण समाज का अर्थ (Meaning of Rural Society)-
समाजशास्त्र की उत्पत्ति (Origin of Sociology)-
Sunday, September 25, 2022
बीज की परिभाषा एवं प्रकार Definition Of Seed And Types
- बीज के प्रकार (बीज निगम के आधार पर) पड़ने के लिये यहां Click करें।
- भारतीय कृषि में प्रयुक्त होने वाली खेती के प्रकार पड़ने के लिये यहां Click करें।
- खेती की प्रणालियां पड़ने के लिये यहां Click करें।
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परिभाषा(Defination)
बीज का विकास (Development of Seeds)
बीजाण्ड के विभिन्न भाग बीज के विभिन्न भागों का निर्माण करते हैं। जैसे बीजाण्ड के कृष्णपाल(funikcel) से बीज वृन्त, बाह्य आवरण से कवच (Testa), अन्तः आवरण से अंतः कवच (Tegmen) एवं अण्ड द्वार (Microp से बीज द्वार का निर्माण होता है।
बीज के दोनों आवरण क्रमशः टेस्टा व टेगमेन बीज चोल (Seed Coat) बनाते हैं। कभी-कभी ये दोनों आवरण आपस में इस तरह मिले होते हैं कि इन दोनों को अलग करना अत्यन्त कठिन होता है। व अलग-अलग रूप से नहीं पहिचाना जा सकता है। बीजचोल(Seed Coat) के अंदर का संपूर्ण भाग गिरी या करनैल (Kernel) कहलाता है जो दो या एक बीजपत्रों के रूप में होता है। इन्हीं बीजपत्रों के मध्य भ्रूण (Embryo) उपस्थित होता है।
(1) एकबीजपत्री बीज(Monocotyledonous Seed)-
(2) द्विबीजपत्री बीज (Dicotyledonous Seed)-
द्विबीजपत्री बीजों में बीजपत्रों की संख्या दो होती है।। इन बीजों में धूण के विकास के लिये संचित भोजन बीजपत्रों में पाया जाता है इसलिये इनके बीजपत्र स्वस्थ्य मोटे एवं गूदेदार होते हैं।
ये सभी प्रकार को दाल, अमरूद, आम, नीम, जामुन, कपास, इमली, लौकी, मटर, अण्डी आदि द्विबीजपत्री पौधों के उदाहरण हैं। लेकिन प्रायः सभी द्विबीजपत्री पौधों के बीजों में दो बीजपत्र होते हैं लेकिन अपवाद स्वरूप कुछ द्विबीजपत्री पौधों के बीजों में केवल एक ही बीजपत्र होता है। जैसे भुईकेश (Corydalis) में। यह पोस्त कुल (Poppy Family/Papaveraceae) का एक पतला संजन आरोही (Tendril Climbing) तथा शाकीय पौधा (Herbaceous plant) है। ऐखोनिया (Abronia) में भी केवल एक ही बीजपत्र होता है। बहुत से परजीवियों (parasites) में एक भी बीजपत्र नहीं होता है। जैसे अमरबेल (Dodder) में।
(2) अभ्रूणपोषी बीज (Non Endospermic Seeds)-
वे सभी बीज जिनमें भ्रूणपोष या एन्डोस्पर्म नहीं या जाता अधूणपोषी या नॉन एन्डोस्पर्मिक बौज कहलाते हैं। जैसे द्विबीजपत्री बीज। अधिकतर सभी द्विबीजपत्री अभूणपोषी होते हैं। जैसे चना, मटर, सेम, लौकी, इमली, आम, कपास, दालें, सूरजमुखी, अमरूद आदि। लेकिन द्विबीजपत्री पौधों में अपवाद स्वरूप कुछ भ्रूणपीपी बीज भी पाए जाते हैं। जैसे-अरण्डी (Castor), पोस्त (Poppy), पपीता (Papaya), शरीफा, गुलअब्बास (Four o'clock plant) आदि ।
Wednesday, September 21, 2022
बीज के प्रकार Type Of seed
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- खेती की प्रणालियां Types Of Farming पड़ने के लिए यहां Click करें।
- मध्यप्रदेश का इतिहास History Of Madhya Pradesh पड़ने के लिए यहां Click करें।
- कोरोना विषाणु से बचने का उपाय ही इलाज है -Attempt to avoid coronavirus is the cure पड़ने के लिए यहां Click करें।
- भारत का अद्भुत इतिहास India's Unique History पड़ने के लिए यहां Click करें।
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बीज के प्रकार (Types Of Seeds)
उन्नत बीज की 5 श्रेणिया निम्न प्रकार है जो इस प्रकार है-
1.मूल केन्द्रक बीज (Nucleus Seed)–
इसे नाभीकीय बीज -यह किसी विकसित होने वाली नई किस्म का शुरूआती बीज है जो सबसे कम मात्रा में उपलब्ध रहता है। इस वर्ग के बीजों में सर्वाधिक आनुवांशिक शुद्धता (100%) पाई जाती है। इसे स्वयं प्रजनक द्वारा कृषि विश्वविद्यालयों एवं अनुसंधान संस्थाओ में उत्पादित किया जाता है। मूल केन्द्रक बीज के थेलों पर किसी भी रंग का टैग नही लगाया जाता है।
2. प्रजनक बीज (Breeder seed)–
यह बीज मूल केन्द्रक बीज की संतति है।इसे स्वयं प्रजनक द्वारा कृषि विश्वविद्यालयों एवं अनुसंधान संस्थाओं में उत्पादित किया जाता है। इसमें आनुवांशिक शुद्धता लगभग 100 प्रतिशत होती है। इसकी थैलीयों पर सुनहरे पीले (Golden yellow) रंग का टैग लगा होता है।
3.आधार बीज (Foundation Seed)–
प्रजनक बीज से जो बीज तैयार किया जाता है उसे आधार बीज कहते हैं। यह बीज राष्ट्रीय बीज निगम (NSC), पंजीकृत निजी संस्थाओं या बीज प्रमाणिकरण संस्था द्वारा तैयार किया जाता है। आधार बीज की आनुवांशिक शुद्धता 99.5-99.9 (> 99% ) प्रतिशत एवं भौतिक शुद्धता 99 प्रतिशत से अधिक होनी चाहिए। आधार बीज की थैलियों पर सफेद (White) रंग का टैग लगा होता है।
4.पंजीकृत बीज (Registered Seed)–
यह बीज आधार बीज अथवा स्वय पंजीकृत रीज से तैयार किया जाता है। इस बीज में संतोष जनक आनुवांशिक पहचान एवं शुद्धता पाई जाती है। भारत में समान्यत पंजीकृत बीज का उत्पादन नही किया जाता है तथा आधार बीज से सीधा ही प्रमाणित बीज तैयार किया जाता है। • पंजीकृत बीज की थैलियों पर बैगनी (Purple) अथवा नारंगी (Orange) रंग का टैग लगा होता है।
5.प्रमाणित बीज (Certified Seed)–
यह बीज सामान्यत आधार बीज से तैयार किया जाता है। यह बीज किसान को व्यापारिक फसल उत्पादन हेतु सर्वाधिक वितरित किया जाता है। इसका उत्पादन स्वयं प्रमाणीकरण संस्था या उसकी देख रेख में किया जाता है जैसे सरकारी बीज निगम, बीज प्रमाणीकरण संस्था या स्वयं किसानो द्वारा प्रमाणित बीज तैयार किया जाता है। प्रमाणित बीज की बैलियों पर नीले रंग का टैग लगा होता है। इसमें आनुवांशिक शुद्धता एवं भौतिक शुद्धता 98 प्रतिशत से अधिक होती है।
तो मित्रों आपको यह ब्लोग कैसा लगा लिख कर जरूर बताएं एवं हमारे इस ब्लोग Website को follow करना अवश्य ना भूलें और हमारे इस study Blog website (Agriculture4studentofficial.blogspot.com) शेयर करना ना भूले आपका अपना कृषि मित्र Agriculture4student.
Wednesday, September 14, 2022
भारतीय कृषि प्रयुक्त होने वाली खेती के प्रकार Type of farming In Indian Agriculture
- Farming systems के लिए यहां क्लिक करें
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- India's Unique History And Discovery Of India पड़ने के लिए यहां क्लिक करें।
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कृषि में प्रयुक्त होने वाले खेती के प्रकार
- मिश्रित खेती
- शुष्क खेती
- बहु पत्रकारीय खेती
- रैंचिंग खेती
1.विशिष्ट खेती (Specialized Farming)-इस प्रकार की खेती के अंतर्गत एक ही प्रकार की खेती का उत्पादन किया जाता है और किसान अपनी आय के लिए केवल इसी पर निर्भर रहता है| व्यक्ति की कुल आय में इस प्रकार की खेती कम से कम 50% आय प्राप्त होती है| उदाहरण: चाय, कहवा, गन्ना और रबर इत्यादि की खेती |
2.मिश्रित खेती (Mised Farming)-एक निश्चित फार्म पर पशुपालन, मुर्गीपालन, मछलीपालन, मधुमक्खी पालन व फसलें उगाना ही मिश्रित खेती कहलाता है। इसमें सभी सहायक उद्यमों से 10% आय प्राप्त होती है।
3.शुष्क खेती (Dry Farming)-ऐसी भूमि में जहाँ वार्षिक वर्षा 20 इंच या 750 m.m. अथवा इससे कम हो, इस प्रकार की खेती की जाती है | ऐसी जगहों पर बिना किसी सिचाईं साधन के उपयोगी फसलों का उत्पादन किया जाता है। शुष्क खेती सिर्फ़ वर्षा के जल पर ही निर्भर है।
4.बहु प्रकारीय खेती (Diversified Farming)-इस प्रकार की खेती का सम्बन्ध उन जोतों या फार्मों से है जिन पर आमदनी के स्रोत कई उद्यमों या फसलों पर निर्भर करते हैं और प्रत्येक उद्यम अथवा फसल से जोत की कुल आमदनी का 50% से कम ही भाग प्राप्त होता है। यह सभी सामान्य फार्म की तरह ही कार्य करते। जैसे- एक फार्म अथवा खेत पर सोयाबीन, एक पर मक्का एवं एक फार्म पर धान की बोआई करना चाहिए।
5.रैंचिंग खेती (Ranching Farming)-इस प्रकार की खेती में भूमि पर कोई भी अनतराशश्य क्रिया नहीं की जाती है और न ही कोई भी फसलों का उत्पादन किया जाता है, जबकि प्राकृतिक वनस्पति को उगने दिया जाता है, जिस पर विभिन्न प्रकार के पशुओं चरने के लिए छोड़ दिया जाता है। ऑस्ट्रेलिया में सबसे ज्यादा चारागाह भूमि है प्रति पशु के हिसाब से। जबकि भारत में प्रति पशु चारागाह भूमि कम है।
Wednesday, September 7, 2022
खैती की प्रणालियां- farming systems
दोस्तों आज हम जानेंगे खेतियों की प्रणालियों के बारे यह जानकारी आपके लिए बहुत अगर आप किसान पुत्र हो तो हम जानते खेती कई देशों में अलग-अलग प्रणालियों का प्रयोग किया जाता है जो इस प्रकार हैं-------
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खेती की प्रणालियाँ
जॉनसन के अनुसार, "किसी दिए गए खेत पर उत्पादों के संयोजन और उत्पादों के उत्पादन में उपयोग की जाने वाली विधि या प्रथाओं को खेती की प्रणाली के रूप में जाना जाता है।" भारतीय स्थिति में, खेती की प्रणाली का संबंध आर्थिक और सामाजिक कामकाज के तरीकों से है।
[1] व्यक्तिगत/किसान खेती:
किसान अपने तरीके से कृषि पद्धति का पालन करते हैं और किसान स्वयं अपने खेत का प्रबंधक / आयोजक होता है और किसान का पूरा परिवार निर्णय लेने में मदद करता है। मुख्य उद्देश्य परिवार की आवश्यकता को पूरा करना है न कि लाभ को अधिकतम करना। लगभग 70% भारतीय किसान इस कृषि प्रणाली का अभ्यास कर रहे हैं। किसान द्वारा राज्य सरकार को भूमि कर का भुगतान किया जाता है।
2)पूंजीवादी खेती:
पूंजी उत्पादन का महत्वपूर्ण कारक है और मुख्य उद्देश्य ऐसी खेती में लाभ को अधिकतम करना है पूंजीपति अपने बड़े खेतों पर कृषि की उन्नत तकनीकों और विधियों का उपयोग करते हैं। खेती की ऐसी प्रणाली अमेरिका और ब्रिटेन में भारत में प्रचलित है
पूंजीवादी खेती चाय, कॉफी और रबर के बागानों तक ही सीमित है।
[3] राज्य की खेती -
इस प्रणाली में खेतों का प्रबंधन सरकार द्वारा किया जाता है और कृषि श्रमिकों को आम तौर पर मासिक आधार पर मजदूरी का भुगतान किया जाता है। मुख्य उद्देश्य हमेशा लाभ को अधिकतम करना नहीं होता है। कृषि अनुसंधान कार्य और प्रदर्शन करने के साथ-साथ गुणवत्ता वाले बीजों की मात्रा बढ़ाने के लिए ऐसी कृषि प्रणाली का अभ्यास किया जाता है। जैसे रिसर्च फार्म, सीड फार्म, डेम ऑनस्ट्रेशन फार्म आदि।
[4] कॉर्पोरेट खेती :-
इस खेती का प्रबंधन पूरी तरह से कॉर्पोरेट क्षेत्र के ऑपरेट ईटिंग लूट द्वारा किया जाता है। यहां बड़ी मात्रा में भूमि और बड़ी मात्रा में पूंजी की आवश्यकता होती है। ऐसी कृषि प्रणाली संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के कुछ हिस्सों में देखी जानी है। महाराष्ट्र और तमिलनाडु।
[5] संयुक्त खेती :-
यहां दो या दो से अधिक किसान करते हैं
कृषि कार्यों को संयुक्त रूप से अपने कृषि संसाधनों को पूल करके और अंत में उपज को पिछले निश्चित अनुपात के अनुसार विभाजित करते हैं।
[6] सामूहिक खेती :-
खेती की सामूहिक प्रणाली में कृषि संपत्ति का स्वामित्व समाज को निवेशित किया जाता है, लेकिन व्यक्तिगत किसान को नहीं। सामूहिक फार्म के सभी सदस्यों के साथ समान व्यवहार किया जाता है और सदस्यों को श्रम-ब्रिगेड में विभाजित किया जाता है। प्रत्येक श्रमिक-ब्रिगेड के नेता का चयन किया जाता है। खेत का प्रबंधन निर्वाचित समिति द्वारा किया जाता है। सरकार प्रत्येक सामूहिक खेत से पहले घोषित मूल्य की दर पर उपज की एक निश्चित मात्रा लेता है। यह प्रणाली रूस, चीन जैसे कम्युनिस्ट देशों में लोकप्रिय है। सामूहिक खेती के तीन मुख्य रूप हैं। टोज़, कोल्खोज़ और कम्यून।
[7] सहकारी खेती:-
सभी किसान या सदस्य स्वेच्छा से अपनी जमीन, श्रम और पूंजी जमा करते हैं और आपसी लाभ पाने के लिए एक साथ खेती के कार्य करते हैं।
तो दोस्तों खेती की प्रणालियां कैसी बताना भूलना और अगर हमारा ब्लॉग पसंद तो प्लीस follows करना एवं आपके मित्रों से कराना।
Wednesday, December 23, 2020
मध्य प्रदेश का इतिहास = Madhya Pradesh India's History
पाषाण युग
वैदिक काल
मौर्य और उनके उत्तराधिकारी
मध्यकालीन
आधुनिक
Monday, December 21, 2020
कोरोना विषाणु से बचने का उपाय ही इलाज है -Attempt to avoid coronavirus is the cure
- अगर आपको लगता है कि हमें थोड़ी सी हरारत है और थोड़ा हल्का सा बुखार तो इसके लिए आप गर्म पानी पी लिया करें तथा लोंग, इलाइची, गिलोय, अदरक, गुड़ के केप्सूल बना कर तथा इन्ही का काढ़ा बनाकर पीने से लाभ मिलता है।
- अगर आपको लगता है कि हमें थोड़ी सी हरारत है और थोड़ा हल्का सा बुखार तो इसके लिए आप गर्म पानी पी लिया करें तथा लोंग, इलाइची, गिलोय, अदरक, गुड़ के केप्सूल बना कर तथा इन्ही का काढ़ा बनाकर पीने से लाभ मिलता है।
- अगर आप गर्म पानी में आधा नींबू मिलाकर सेवन करें तो आप को विटामिन सी की प्रर्याप्त मात्रा में प्राप्ति होगी।
- अगर आप को पेट से सम्बन्धित समस्याएं पैदा हो रही हो तो आप विटामिन बी जिसका वैज्ञानिक नाम थाईमीन है उससे संबंधित दवाई ले सकते हैं।
- अगर आप डाइविटीज के मरीज हैं तो आप अपनी इन्सुलिन सही समय पर लें।
- आप सही समय पर हो सकता 5 से 7 मिनट तक प्राणायाम अवश्य करें।
Sunday, November 22, 2020
India's unique history and discovery in Hindi
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